Where Good Ideas Come From Book Summary in Hindi – क्या आप भी Creative बनना चाहते हैं ?

Where Good Ideas Come From Book Summary in Hindi – (व्हेयर गुड आइडियाज़ कम फ्राम) ये बुक समरी हमें पृथ्वी पर जीवन के विकास और विज्ञान के इतिहास के बारे में बताती है। ये न्यू यॉर्क टाइम्स की बेस्ट सेलर किताब है, जो नए आविष्कार करने और नए खोज करने के तरीके बताती है।

 
 

ये बुक समरी किसके लिए है?

  1. जो व्यक्ति विज्ञान के इतिहास को जानने में रुचि रखता है।
  2. जो व्यक्ति पृथ्वी पर जीवन के विकास के बारे में पढ़ना पसंद करता है।
  3. जो व्यक्ति क्रिएटिव बनना चाहता है।
 
 

लेखक के बारे में

 
स्टीवन जॉनसन (Steven Johnson) एक अमेरिकी विज्ञान के लेखक हैं। वो द वाल स्ट्रीट जर्नल, द न्यू यॉर्क टाइम्स और द फाइनेंसियल टाइम्स के लिए नियमित रूप से लिखते हैं। Everything Bad Is Good For You और The Ghost, उनकी बेस्ट सेलर किताबें हैं।
 
 

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए

 
दुनिया आज बहुत तेजी से तरक्की कर रही है। जितनी तरक्की इंसानों ने 3,000 सालों में नहीं की थी, उससे ज्यादा तरक्की उसने पिछले 30 सालों में की है। इंटरनेट की मदद से जानकारी आज दूर दूर तक पहुंच रही है। हर रोज हम अखबारों में एक नए आइडिया या नई खोज के बारे में पढ़ते हैं। मार्केट में हर तीसरे महीने एक नए फीचर वाला फोन आता है।
 
क्या आपने कभी सोचा है कि लोगों को इतने सारे आविष्कार करने के आइडियाज़ कहाँ से आते हैं? क्या आपको पता है कि किस तरह से दुनिया के महान वैज्ञानिकों के दिमाग में उनके आविष्कार का आइडिया आया था? यह किताब इन्हीं सवालों का जवाब देती है। यह किताब बताती है कि हमारे अंदर नए आइडियाज़ किस तरह से पैदा होते हैं। इस किताब की मदद से आप अपनी सोच को बेहतर बनाना और नए आइडियाज़ पैदा करना सीख पाएंगे।
 
 

इसे पढ़कर आप सीखेंगे

  1. वो कौन सी चीजें हैं जो नई सोच को बढ़ावा देती हैं।
  2. हमारी गलतियां किस तरह से कभी कभी फायदेमंद होती हैं।
  3. किस तरह से आप अपनी क्रीएटिविटी को बढ़ा सकते हैं।
 
 

Where Good Ideas Come From Book Summary in Hindi – नए खोज करने का तरीका

 

विकास और नई सोच अक्सर एक दूसरे के साथ साथ चलते हैं।

 
 चार अरब साल पहले, कार्बन हर चीज में पाया जाने लगा। या यूँ कह लीजिए कि कार्बन की मदद से ही हर चीज़ बनने लगी। लेकिन ऐसा नहीं कि इन कणों ने अचानक से खुद को व्यवस्थित कर के सूरजमुखी या गिलहरी जैसे जीवित चीजें बना ली।
 
पहले कार्बन को मॉलेक्यूल बनाना पड़ा। उस मॉलेक्यूल से कुछ पॉलीमर बनें, जिनसे प्रोटीन बना। उस प्रोटीन से सेल बने और उन सेल्स से प्राचीन जीव और बहुत सी छोटी चीजें बनीं। हर कदम पर उन्होंने कोई नई रचना की। फिर कहीं जाकर कार्बन सूरजमुखी बना पाया।
 
इसी तरह eBay 1950 में नहीं बनाया जा सकता था। सबसे पहले किसी ने कंप्यूटर का आविष्कार किया। फिर किसी ने उन कम्प्यूटरों को एक साथ जोड़ने का तरीका खोजा और वर्ल्ड वाइड वेब (world wide web) बनाया। अंत में एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाया गया जहाँ पर ऑनलाइन पैसे दिए जा सकें। इसके बाद कहीं जाकर eBay बन पाया।
 
अगर यूट्यूब 1990 में आया होता, तो वो सफल नहीं हो पाता। क्योंकि उस समय न तो तेज़ इंटरनेट था और न ही वो सॉफ्टवेयर था जिससे नए वीडियो देखें जा सकें। इसलिए, आसान शब्दों में कहें तो, अगर परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं तो बड़े काम सफल नहीं हो सकते।
 
इस तरह से कोई भी चीज अचानक से नहीं बन जाती, बल्कि उसके बनने के पीछे बहुत सी चीजों का हाथ होता है। वो चीजें जो आपस में आकर जुड़ती हैं, तब कहीं जाकर एक नई खोज हो पाती है।
 
 

दुनिया को बदलने वाली सोच कभी अचानक से पैदा नहीं होती बल्कि वो समय के साथ धीरे-धीरे पैदा होती है।

 
 अगर हम नए खोज की दुनिया को देखें तो लगता है कि वो उन खोजों को करने वाले वैज्ञानिकों के दिमाग में उसका आइडिया अचानक से आ गया था। लेकिन असल में ऐसा कुछ नहीं होता। किसी खोज को करने में या किसी नई चीज़ को बनने में समय लगता है।
 
डार्विन का कहना था कि जब वो माल्थस के ‘जनसंख्या विकास’ (population growth) के बारे में पढ़ रहे थे तभी उनके दिमाग में ‘नेचुरल सेलेक्शन के सिद्धांत’ का खयाल आया। लेकिन उनकी नोटबुक से पता चलता है कि पहले भी कई बार उन्होंने कुछ ऐसा ही सोचा था इससे यह पता लगता है कि नेचुरल सिलेक्शन का सिद्धांत उन्हें समय के साथ धीरे-धीरे समझ आया था।
 
कुछ इसी तरह वर्ल्ड वाइड वेब भी बना था। बचपन में, टिम बर्नर्स ली ने विक्टोरिया के समय की एक किताब पढ़ी। उसमें उन्हें ‘portal of information’ का जिक्र मिला जिसे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए।
 
इसके कुछ दस सालों बाद वो Swiss CERN लैब में एक कंसलटेंट की तरह काम करने लगे। वहाँ पर उन्होंने किसी भी सूचना को इक्कठा करना और आपस में उन्हें एक नेटवर्क से जोड़ने पर काम शुरू किया। कुछ दस सालों बाद CERN ने उन्हें इस प्रोजेक्ट पर और काम करने की इजाज़त दी।
 
फिर कहीं जाकर ऐसा नेटवर्क बन पाया जिसमें हाइपर टेस्ट लिंक की मदद से अलग अलग कंप्यूटर को जोड़ा जा सकता था। बर्नर ली की कई सालों की मेहनत के बाद वर्ल्ड वाइड वेब बन पाया।
 
 

प्लेटफार्म हमें नई खोज करने की सुविधा देते हैं।

 
 करीब दो दशक पहले एकोलॉजिस्ट ये समझ गए थे कि प्रकृति के जीव दूसरे जीवों के लिए रहने का स्थान बनाते हैं। वो एक दूसरे का फायदा करते हैं। एग्जांपल के लिए जब कोई जानवर मर जाता है, तो कीड़े उसे खाकर ना सिर्फ प्रकृति को साफ करते हैं, बल्कि वो उस मरे हुए जानवर को खाद में बदल देते हैं जिससे वहां पर नए पौधे और पेड़ उग पाते हैं।
 
हमारी प्रकृति एक प्लेटफार्म है जिसपर बहुत से जानवर और पौधे रहते हैं और एक दूसरे के फायदे के लिए काम करते हैं। इसी तरह के बहुत से दूसरे प्लेटफार्म भी मौजूद हैं जिसमें लोग एक दूसरे को फायदा पहुंचाते हैं। प्लेटफार्म की मदद से हमें नई खोज करने में आसानी होती है।
 
GPS (global positioning system) एक ऐसे ही प्लेटफार्म का एग्जांपल है। पहले GPS सिर्फ सेना के इस्तेमाल करने के लिए बनाया गया था। लेकिन अब GPS ट्रैकर का इस्तेमाल मैप्स, एडवरटाइजिंग जैसे कई चीजों में इस्तेमाल किया जा रहा है। GPS प्लेटफार्म की मदद से आज नई नई टेक्नोलॉजी का विकास हो पा रहा है जिससे कंपनियों के साथ साथ ग्राहकों का भी फायदा हो रहा है।
 
एक प्लेटफार्म कई और प्लेटफार्म का आधार बनाती है, जो अनगिनत आविष्कार को जन्म देता है।
 
ट्विटर की कहानी भी ऐसी ही है। सबसे पहले इंटरनेट नाम का एक प्लेटफार्म है जहां पर बहुत से लोग जानकारियाँ बाँटते थे। इस प्लेटफार्म के आधार पर ट्विटर बना, जहाँ पर लोग अपनी हर रोज की जिन्दगी की खबरें लोगों के साथ बाँटने लगे। आज ट्विटर खुद एक प्लेटफार्म बन गया है और अब बहुत से लोग हैं जो ट्विटर पर दूसरे प्लेटफार्म बना रहे हैं।
 
 

नई सोच और विकास के फैलने के लिए एक नेटवर्क का होना जरूरी है।

 
 कार्बन हर जीवित चीज़ में पाया जाता है क्योंकि वो दूसरे कड़ो से काफी आसानी से जुड़ जाता है और प्रोटीन जैसे कॉम्प्लेक्स मॉलिक्यूल बना लेता है। बिना कार्बन के शायद धरती पर जीवन संभव नहीं हो पाता।
 
कहने का मतलब है कि नई सोच और नए आविष्कार के लिए दूसरों से कनेक्शन बनाना बहुत जरूरी होता है। जब इंसानों ने शहर और कस्बे बनाना शुरु किया तो वो अपनी सोच और आविष्कारों को ज्यादा लोगों तक पहुँचा पाए। अगर ऐसे कनेक्शन नहीं बने होते तो इंसान के साथ उसकी नई खोज भी खत्म हो जाती। इसलिए अपनी सोच को दूसरों तक पहुँचाने के लिए एक अच्छा कनेक्शन होना जरूरी है।
 
फोर मॉलिक्यूलर बायोलॉजी लैब में वैज्ञानिकों ने अपनी खोज को और अच्छे तरीके से समझने के लिए अपने हर आइडिया रिकॉर्ड करना शुरु किया। वो दूसरे लोगों के साथ बैठ कर अपने काम के बारे में बात करते थे। ऐसे ही किसी मीटिंग में एक वैज्ञानिक के दिमाग में माइक्रोस्कोप का आइडिया आया था, जो कि आज हर लैब का एक जरुरी हिस्सा बन चुका है।
 
रिसर्च में भी ये पता चलता है कि क्रिएटिव लोगों का सोशल नेटवर्क भी बड़ा होता है। वो कई लोगों से मिलते-जुलते हैं। इसलिए उन्हें अलग-अलग चीजों से संबंधित नए आइडियाज के बारे में पता लगता है।
 
छोटे कस्बों के मुकाबले शहरों में लोग एक-दूसरों से ज्यादा मिलते हैं। एक-दूसरों के साथ नई सोच विचारों को बाँटाते हैं। यही वजह है कि गाँव के मुकाबले शहर के लोग ज्यादा क्रिएटिव होते हैं।
 
हालांकि ऐसा क्रिएटिव नेटवर्क अब सिर्फ शहर तक सीमित नहीं रह गया है। इंटरनेट लोगों को एक बहुत बड़ा प्लैटफार्म देता है, जिसकी मदद से लोग अपनी सोच दूसरों तक आसानी से पहुँचा पाते हैं।
 
 

किसी नई खोज के लिए प्रतियोगिता के साथ दूसरों का सहयोग भी जरूरी है।

 
 इन्वेंटर और आन्त्रप्रिन्योर अक्सर नई खोज करते हैं और उसकी मदद से पैसे कमाते हैं। इस तरह से बहुत से लोगों को नई खोज करने की प्रेरणा मिलती है। लेकिन वे अपने इन आविष्कारों पर पेटेंट की मदद से रोक लगा देते हैं। पेटेंट लग जाने की वजह से लोग उनके आविष्कार में अपने हिसाब से बदलाव कर के उसे बेहतर नहीं बना पाते, जिस वजह से तरक्की की रफ्तार कम हो जाती है।
 
हमें नए खोज करने वालों को बढ़ावा देना चाहिए, उन्हें एक ऐस माहौल देना चाहिए जिससे वे अपने आइडियाज़ पर खुलकर काम कर सकें। पेटेंट या दूसरी चीजों की मदद से अपनी नई खोज को सिर्फ अपने तक रखने से हम कभी तेजी से विकास नहीं कर पाएंगे। हमें प्रतियोगिता के साथ साथ सहयोग की भी जरुरत है।
 
ओरिजिन ऑफ स्पीशीज (origin of species) में डार्विन ने जितना जोर नेचुरल सिलेक्शन पर दिया है उतना ही जोर इस बात पर भी दिया है कि जिंदा रहने के लिए प्रजातियों के बीच में सहयोग होना चाहिए। नेचुरल सिलेक्शन का सिद्धांत कहता है कि प्रकृति में वही जीव जिन्दा रहेगा जो ज्यादा ताकतवर होगा और खुद को मुश्किल हालात में सुरक्षित रख पाएगा। प्रतियोगिता का मतलब भी यही होता है – जो ज्यादा काबिल होगा वही जीतेगा। लेकिन अगर वे एक दूसरे के साथ मिलकर काम करना छोड़ देंगे, तो वे जिन्दा नहीं रह पाएंगे। जानवरों को जिन्दा रहने के लिए पेड़-पौधों की और पेड़-पौधों को जिन्दा रहने के लिए जानवरों की मदद की जरुरत हमेशा पड़ेगी।
 
इसी तरह से नई खोज के लिए प्रतियोगिता के साथ दूसरों का सहयोग भी होना जरूरी है।
 
 

नए आविष्कार के लिए अलग अलग विचारों के बीच में कनेक्शन का होना जरुरी है।

 
  नए आविष्कार करने के लिए हमें खुद को एक पानी जैसे माहौल में रखना होगा। नदी में बहते पानी में हमेशा उथल-पुथल होती रहती है। वो अपने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को काट देती है और आगे बढ़ने का रास्ता खोज लेती है। लेकिन इतनी उथल-पुथल के बाद भी, पानी के मॉलेक्यूल का हाइड्रोजन बांड उसे जोड़कर रखता है, जिससे पानी हमेशा एक धारा में बहती है। पानी बहुत सी अलग अलग चीजों को अपने साथ लेकर चलती है और उनके बीच में कनेक्शन बनाती है।
 
नई सोच के लिए हमें खुद को पानी की तरह के माहौल में रखना होगा, जहाँ हमें स्थिरता भी मिले और अस्थिरता भी। हमें एक ऐसा माहौल चाहिए जिसमें हमारे रास्ते में लगातार कुछ रुकावटें आती रहें और हमारे अंदर उथल-पुथल मचती रहे। इसके साथ ही हमें एक धारा में बहना होगा और बहुत सी दूसरी चीजों के साथ कनेक्शन बनाना होगा ताकि हम आसानी से किसी समस्या का समाधान खोज सकें।
 
कभी-कभी दिमाग में एकाएक ऐसे विचार आ जाते हैं जो किसी नई खोज को करने में हमारी मदद करते हैं। एग्जाम्पल के लिए सपने। सपने एक ऐसी जगह हैं जहाँ अलग अलग विचार एक दूसरे से मिलते हैं। मनोवैज्ञानिक ने इस बात की पुष्टि भी की है कि जब हम किसी समस्या से परेशान होकर सोते हैं, तो सपने उसे सुलझाने में हमारी मदद करते हैं।
 
सदियों पहले, एक जर्मन केमिस्ट केकुले ने एक सपना देखा था। उस सपने में एक साँप अपनी ही पूछ को काट रहा था। इस सपने के बाद ही केकुले समझ पाए कि बेंजीन मॉलिक्यूल में कार्बन एक रिंग का आकार लेता है।
 
ऐसा लगता है कि क्रिएटिविटी और गड़बड़ी एक दूसरे के साथ जुड़ी है। जो व्यक्ति जितनी ज्यादा परेशानियों का सामना करता है, वो उतने ही अच्छे समाधान निकाल पाता है और उतना ही क्रीएटिव कहलाता है।
 
 

जानकारियों को बांट कर नए खोज को बढ़ावा दिया जा सकता है।

 
 जब अलग-अलग कल्चर के लोग एक साथ मिलकर अपनी जानकारी और अपने ज्ञान को एक-दूसरे के साथ बाटते हैं तो उन्हें अलग तरह से सोचने का मौका मिलता है। 1920 के दशक में कई कलाकार, लेखक, और कवि एक साथ मिलते थे। वे एक दूसरे के साथ अपना ज्ञान बाँटते थे। इस वजह से अलग-अलग तरह के आइडियाज़ दूसरों तक पहुँचते थे जिससे नई सोच को बढ़ावा मिलता था।
 
चार्ल्स डार्विन और बेंजामिन फ्रैंकलिन ने एक साथ कई प्रोजेक्ट्स पर काम किया था। उनका एक प्रोजेक्ट कुछ ही दिनों के लिए चलता था, पर उससे सीखी हुई चीज उन्हें हमेशा याद रहती थी।
 
एक ऑर्गेनाइजेशन के लिए, नई सोच और प्रेरणा की चाभी एक अच्छा नेटवर्क है। ये उन्हें नई चीजें सीखने का मौका देता है।
 
ऐसे नेटवर्क का सबसे बड़ा डॉन जाम्पल इंटरनेट है। यहाँ न सिर्फ हमें अच्छे आइडियाज मिलते हैं बल्कि दूसरे लोगों से मिलने का मौका भी मिलता है।
 
 

कभी कभी हमारी गलतियां ही एक महान खोज को जन्म दे जाती हैं।

 
 चाहे वो जीवन का विकास हो या कोई नई खोज, गलतियां हर जगह होती हैं। लेकिन ये जरुरी नहीं कि गलतियां हमेशा बुरी हो।
 
एग्जांपल के लिए हम जीन्स को लेते हैं। माता-पिता का जीन उनके बच्चों में जाता है, जिसमें बच्चों के विकास की पूरी जानकारी होती है। अगर उन जीन्स में म्युटेशन (जीन्स में किसी तरह की गड़बड़ी या बदलाव) नहीं हुआ होता तो एवोल्यूशन कभी संभव नहीं होता। अगर जीन्स में बदलाव नहीं हुआ होता तो हाथी की सूंड़ या मोर के पंख कभी नहीं बने होते। म्युटेशन जीवों को नई खूबियां देता है। हाँ, कई बार म्युटेशन की वजह से बच्चों में कुछ खराबियां भी पैदा हो जाती हैं। लेकिन यही म्युटेशन कई बार अच्छी चीजें बनाने में भी मदद करती है।
 
इसी तरह, एलेग्जेंडर फ्लेमिंग ने पेनिसिलिन की खोज एक भूल की वजह से की थी। अगर वो गलती से अपने बैक्टीरिया सैंपल को मोल्ड्स से दूषित नहीं करते तो उन्हें ये नहीं पता चलता कि बैक्टीरिया कैसे मर रहे हैं और वो पेनिसिलिन की खोज कभी नहीं कर पाते।
 
गलतियां ही हमें पुराने तरीके छोड़ने और नए तरीकों को अपनाने के लिए मजबूर करती हैं।
 
 
 

पुराने आइडिया में कुछ बदलाव कर के नए आविष्कार किए जा सकते हैं।

 
 एवोलुशनलरी बायोलॉजिस्ट एक्सेप्टेशन (exaptation) शब्द का इस्तेमाल उस खूबी को दिखाने के लिए करते हैं, जो पहले तो किसी दूसरे काम के लिए विकसित हुई थी पर अंत में किसी और काम के लिए इस्तेमाल होने लगी। जैसे जीवों में पंख का विकास शरीर के तापमान को काबू करने के लिए हुआ था। लेकिन आज वो पक्षियों की उड़ने में मदद करता है।
 
पुराने आइडिया में कुछ बदलाव कर के उनका इस्तेमाल हम नई चीजों को बनाने में कर सकते हैं।
 
टीम बर्नर्स ली ने इंटरनेट पढ़ने-लिखने वाले लोगों के लिए बनाया था। लेकिन आज उसका इस्तेमाल शॉपिंग, सोशल नेटवर्क, पोर्नोग्राफी जैसी चीजों के लिए भी हो रहा है।
 
गुटेनबर्ग ने अपनी मेटलर्जी की जानकारी का इस्तेमाल करके हज़ारों साल पुराने अंगूर का रस निकालने वाली तकनीक से दुनिया का पहला प्रिंटिंग प्रेस बना दिया था।
 
ऐसे और भी बहुत सारे एग्जांपल है, जहाँ किसी पुराने तरीके को इस्तेमाल कर के कुछ नया आविष्कार किया गया है। अगर आप उनमें बदलाव करने में कामयाब हो जाएं, तो आप भी नए आविष्कार आसानी से कर सकते हैं।
 
 

Conclusion –

 
किसी भी महान खोज को पूरा होने में समय लगता है। समय के साथ धीरे-धीरे विचार बनते हैं और एक दूसरे से कनेक्ट होते हैं। तब कहीं जा कर एक अच्छा आविष्कार होता है। नए आविष्कार और विकास के लिए लोगों के बीच एक अच्छा संबंध होना चाहिए। कभी कभी गलतियां भी नए आविष्कार करने में हमारी मदद करते हैं।
 
 
 
 तो दोस्तों आपको आज का हमारा यह बुक समरी कैसा लगा नीचे कमेंट करके जरूर बताये और इस बुक समरी को अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें।
 
 
आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद,
 
Wish You All The Very Best.

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