Unstoppable Book Summary in Hindi – मारिया शारापोवा की आत्मकथा

Hello दोस्तों, अनस्टॉपेबल (Unstoppable) दुनिया की सबसे महान कही जाने वाली टेनिस खिलाड़ी मारिया शारापोवा की आत्मकथा है। इस किताब में हम पढ़ेंगे कि किस तरह से शारापोवा रुस के एक गरीब घर से निकल कर अपने पिता के साथ अमेरिका आई और किस तरह से उन्होंने दुनिया पर अपनी एक छाप छोड़ी।

अगर आप टेनिस में दिलचस्पी रखते हैं, और एक खिलाड़ी हैं या बनना चाहते हैं, तो आपको मारिया शारापोवा के बारे में जानना जरुरी है।

लेखिका के बारे में

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मारिया शारापोवा (Maria Sharapova) दुनिया की नंबर वन टेनिस खिलाड़ियों में से एक हैं। उन्होंने अब तक 5 ग्रैंड स्लैम जीते हैं। वे 2001 से डब्लुटीए के साथ टेनिस में प्रतियोगिता कर रही हैं और कुल मिला कर 21 हफ्तों तक दुनिया की नंबर वन चैंपियन रही हैं।

Unstoppable Book Summary in Hindi

यह बुक समरी आपको क्यों पढ़ना चाहिए?

  • दुनिया में बहुत से महान लोग पैदा हुए, जिन्दगी में असंभव से दिखने वाले हालातों से लड़ाई की और सबसे ऊपर पहुंचे, हर एक व्यक्ति की कहानी अपने आप में बहुत शानदार है, इन लोगों ने दुनिया को अपने काम से प्रेरित किया कि जिन्दगी चाहे कितनी भी मुश्किल हो, हम इसे बेहतर बनाने के लिए हमेशा कुछ ना कुछ कर सकते हैं। यह किताब एक ऐसी ही व्यक्ति की आत्मकथा है।
  • मारिया शारापोवा की इस कहानी में हम जानेंगे कि किस तरह से वे दुनिया की नंबर वन खिलाड़ी बनीं।
  • यह किताब हमें उनकी जिन्दगी के हर उस पहलू के बारे में बताती है जिसने इस महान पद को हासिल करने में उनकी मदद की।
  • उन्होंने किस तरह से अपने कैरियर की शुरुआत की।
  • उन्होंने किस तरह से तरह तरह की समस्याओं को अपने पिता की मदद से पार किया।
  • उन्हें क्यों टेनिस से बैन कर दिया गया था।

मारिया शारापोवा बचपन से ही टेनिस खेलने लगीं थीं।

मारिया शारापोवा का जन्म 19 अप्रैल 1987 को साइबेरिया के न्यागन नाम के शहर में हुआ था।

वैसे तो वे रशिया की रहने वाली थीं, लेकिन जब 1986 में वहाँ पर चेर्नोबिल न्युक्लीयर अटैक हुआ तो उनका परिवार साइबेरिया चला गया। लेकिन कुछ समय के बाद वे ब्लैक सी के किनारे एक घर में रहने के लिए चले गए। वे अब सोची शहर में रहने लगे।

एक दिन शारापोवा के भाई ने उन्हें मजाक में एक टेनिस रैकेट दे दिया और उनके पिता उन्हें अपने साथ एक टेनिस कोर्ट में ले आए।

उनके पिता का नाम यूरी था। जब 4 साल की शारापोवा के पिता अपने टेनिस की प्रैक्टिस कर रहे थे, तो शारापोवा ने भी अपने रैकेट उठा लिया और दिवार पर बॉल मार कर खेलने लगीं।

यह वो वक्त था जब उनके पिता ने पहली बार उनकी काबिलियत को देखा।

वो उस खेल पर बहुत अच्छे से ध्यान लगा पा रहीं थीं। उनके पिता को लगा कि शारापोवा के हुनर को निखारने के लिए उसे एक कोच की जरूरत पड़ेगी। इसलिए शारापोवा को 4 साल की उम्र में उनका पहला कोच मिला।

बचपन में शारापोवा टेनिस खेलने के अलावा अपने दोस्तों के साथ बहुत वक्त बिताया करती थीं। वे अपनी माँ येलीना के साथ कहानियां लिखा और पढ़ा करती थीं।

उनकी माँ उन्हें रशिया के अक्षर पढ़ना और लिखना सिखाया करत थीं और इसके अलावा वे उन्हें अलग अलग तरह की कविताएं भी पढ़ने के लिए कहती थीं।

कुछ वक्त के बाद शारापोवा अपना पूरा ध्यान टेनिस को देने लगीं। उनके पिता अब उन्हें टूर्नामेंट खेलने के लिए भेजा करते थे। लेकिन इसके अलावा उन्हें घर से बाहर निकलने की आजादी नहीं थी। वे अक्सर अपने घर से ही सारे बच्चों को बाहर खेलते हुए देखा करती थीं।

शारापोवा के परिवार को यह एहसास हुआ कि उन्हें उनका हुनर निखारने के लिए अमेरिका जाना होगा।

शारापोवा प्राकृतिक रुप से टेनिस खेलने के लिए ही पैदा हुई थीं। वे घंटों तक बिना थके और बिना अपना ध्यान भटकाए टेनिस खेला करती थीं।

एक बार जब उनके हाथ में रैकेट पकड़ा दिया जाता तो वे बिना रुके बहुत देर तक सिर्फ प्रैक्टिस किया करतीं थीं। उनकी इस खासियत को उनके कोच युडकिन ने देखा।

लेकिन शारापोवा के सबसे पहले कोच थे। वे अपनी गलियों के चैंपियन थे। जब उन्होंने देखा कि शारापोवा का हुनर वाकई लाजवाब है तो वे सीधा उनके पिता के पास गए।

उन्होंने शारापोवा के पिता से कहा कि अगर वे वाकई उनके हुनर को निखारना चाहते हैं तो उन्हें किसी ऐसी जगह पर जाना होगा जहां पर उन्हें अच्छे कोच मिल सकें।

रशिया अभी अभी सोवियत यूनियन से अलग हुआ था और वहाँ पर ऐसी सुविधाएं नहीं थीं। इसलिए अब उन्हें अमेरिका जाना होगा। इसके अलावा जब एक सेक-अमेरिकी टेनिस चैंपियन मार्टिन नवरैतिलोवा ने जब रशिया में एक रैली की तो वहाँ पर शारापोवा को अपना हुनर दिखाने का एक मौका मिला।

नवरैतिलोवा ने जब शारापोवा को खेलते हुए देखा तो वे दंग रह गयीं। वे भी उनके पिता के पास गई और उनसे कहा कि शारापोवा को एक अच्छे कोच की जरुरत है। शारापोवा के पिता ने तुरंत अपनी जिन्दगी के सारे प्लान बदल दिए। अब अगर उन्हें किसी चीज़ के लिए जीना था तो वो था शारापोवा का भविष्य बनाना। उन्होंने फैसला किया कि वे उन्हें किसी भी हाल में अमेरिका लेकर जाएंगे।

अमेरिका पहुँच पर यूरी और शारापोवा को बहुत परेशानियाँ उठानी पड़ी।

यूरी अब पूरे मन से शारापोवा को एक अच्छा कोच दिलवाने के लिए काम कर रहे थे। वे चाहते थे कि शारापोवा को रशियन टेनिस फेडेरेशन की जूनियर टीम में दाखिला मिल जाए। उस समय यह टीम फ्रोरिडा के रिक मस्सी टेनिस अकैडमी में एक टूनामेंट की प्रैक्टिस कर रही थी।

रशियन टेनिस फेडेरेशन में उन बच्चों को दाखिला मिलता है जो 12 साल या उससे ज्यादा के होते हैं। शारापोवा अभी 6 साल की थीं और उनके पिता जानते थे कि उन्हें आसानी से वहाँ पर दाखिला नहीं मिलेगा। लेकिन फिर भी उन्होंने उनके कोच को एक चिठ्ठी लिखी।

उसमें उन्होंने लिखा कि किस तरह से नवरैतिलोवा और युडकिन ने कहा कि शारापोवा को अगर अच्छा कोच मिल जाए तो वे बहुत ऊपर तक जा सकती हैं। हैरानी की बात यह थी कि यूरी के पास कोच का जवाब आया और उसने कहा कि वे उनके यहाँ फ्लोरिडा में आकर प्रैक्टिस कर सकते हैं।

अब एक समस्या खत्म हो चुकी थी और दूसरी समस्या पैदा हो गई। उन दिनों रशिया से अमेरिका के लिए जा पाना लगभग नामुमकिन था। लेकिन यूरी किसी तरह से मास्को में अमेरिकन एम्बैसी गाए और वहाँ से उन्होंने दो वीज़ा बनवाये जो कि तीन साल के थे।

अब वे शारापोवा की माँ येलीना को छोड़कर अमेरिका के लिए रवाना हुए। उसके बाद वे दोनों मियामी में उतरे। लेकिन जब वे बोका रैटन में उस टीम के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि कोच वहाँ पर नहीं थे। उन्होंने बाकी सबको समझाने की कोशिश की लेकिन किसी ने उनकी कहानी पर भरोसा नहीं किया।

वे लोग इस बात पर यकीन नहीं कर रहे थे कि एक रशियन सिर्फ 700 डालर के साथ अमेरिका आया है और वो भी अपनी बेटी का हुनर साबित करने के लिए। लेकिन वहाँ पर शारापोवा को अपना हुनर साबित करने का मौका दिया गया। उसका हुनर देखने के बाद वहाँ के लोगों ने कहा कि जब तक वहां का मालिक रिक मस्सी नहीं आ जाता तब तक वे वहाँ पर रह सकते हैं और उसके बाद वे फैसला करेंगे कि वे शारापोवा को टीम में लेंगे या नहीं।

लेकिन यूरी अब बहुत सुन चुके थे। उन्होंने मना कर दिया और वे अपनी बेटी को ब्रेडेंटन, फ्लोरिडा में ले आए जहाँ पर फेमस कोच निक बोलेटीरी अपनी बोलेटीरी टेनिस अकैडमी चलाते थे।

शारापोवा ने बहुत जल्द अपने आप को नए माहौल में ढाल लिया।

अमेरिका की जिन्दगी बहुत मुश्किल थी। यूरी को वहां की भाषा नहीं आती थी जिसे वो सीखने की पूरी कोशिश कर रहा था। इसके अलावा वो शारापोवा के लिए टेनिस के बारे में हर तरह की जानकारी इकठ्ठा कर रहा था ताकि वो उसे आगे के लिए गाइड कर सके।

यूरी रोज सुबह 5 बजे उठकर अपनी बेटी को अकैडमी लेकर जाता था जहां पर वो सारा दिन प्रैक्टिस किया करती थी। इसके बाद वो कहीं भी जाकर छोटा मोटा काम किया करता था ताकि वो उसका पेट भर सके और रहने के लिए किराया चुका सके।

यूरी का एक ही मकसद था- अपनी बेटी को दुनिया का सबसे महान टेनिस चैंपियन बनाना।

दूसरी तरफ शारापोवा कम उम्र की होने की वजह से दूसरों से लम्बाई के मामले में बहुत छोटी थीं। उन्हें एक अलग तरह का रैकेट इस्तेमाल करना पड़ता था जो कि उनके कोच ने उनके लिए ला कर दिया था। उनके कोच के शारापोवा के मुफ्त के खाने का और मुफ्त में प्रैक्टिस करने का इंतजाम कर दिया था।

शारापोवा के ऊपर जितनी भी मेहनत की जा रही थी वो सब कुछ समय के बाद रंग लाने लगी। शारापोवा पहले से बेहतर बनने लगीं। वो किसी से दोस्ती नहीं करती थीं क्योंकि वे हर किसी को अपने प्रतिद्वंद्वी की तरह देखती थीं।

कुछ साल के बाद उनके एक कोच – थामस हाग्सटेड ने दूसरे खिलाड़ियों से कहा कि वे मैच से पहले या मैच के दौरान शारापोवा की आँखों में ना देखें। उनकी आँखों में टेनिस को लेकर जो जुनून था उससे हर कोई डर जाता था। वहाँ पर जाने के बाद शारापोवा की काबिलियत बहुत तेजी से बढ़ने लगी। उनके ध्यान लगाने की काबिलियत और ज्यादा हो चुकी थी।

समस्याओं ने यूरी और शारापोवा का साथ नहीं छोड़ा।

शारापोवा जिस अकैडमी में टेनिस की प्रैक्टिस किया करतीं थीं वहाँ पर अमीर लोगों के बेटे टेनिस खेलने आया करते थे। हर कोई यह देखकर हैरान रहता था कि रशिया की यह छोटी सी लड़की किस तरह से उनके बच्चों को हरा रही है। इसलिए बहुत जल्दी ही उन्हें बोलेटीरी की अकैडमी से निकाल दिया गया।

इसके बाद शारापोवा ने सीकोउ बंगोउरा के यहां ट्रेनिंग शुरु की। बंगोउरा भी एक टेनिस चैंपियन था जिसने काफी समय तक बोलेटीरी के साथ काम किया था। कुछ समय के बाद उसने अपनी खुद की अकैडमी शुरु कर दी। लेकिन इस नयी अकैडमी में शारापोवा को मुफ्त में ट्रेनिंग और मुफ्त में खाना नहीं मिलता था ।

यूरी के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो शारापोवा की फीस भर सके। इसलिए वो भी एक कोच की तरह बंगोउरा के यहां काम करने लगा। लेकिन बंगोउरा चाहता था कि वो शारापोवा को अपने हिसाब से काबू कर सके। इसलिए उसने यूरी को काम से निकाल दिया। इसके बाद यूरी को फिर से वो छोटे मोटे काम करने पड़े जिससे वो फीस नहीं भर पा रहा था।

मजदूरी कर करके एक दिन उसके कमर में चोट आ गई और वो कई हफ्तों तक काम पर न जा सका। उनकी मकान मालकिन ने किराए के लिए उन्हें घर से निकाल दिया। इस बीच बंगोउरा ने मौके का फायदा उठाना चाहा। उसने यूरी से कहा कि या तो वो शारापोवा की फीस भरे, या फिर वो एक कान्ट्रैक्ट साइन करे जिसमें वो उसे यह अधिकार दे कि वो शारापोवा को अपनी देख रेख में रख सके। यूरी ने साइन नहीं किया और इसके बाद उन्हें सड़कों पर आ जाना पड़ा।

समय के साथ हालात फिर से अच्छे होने लगे।

यूरी के कुछ दिन अस्पताल में जाने की वजह से उन्हें घर से भी निकाल दिया गया था और साथ ही शारापोवा को टेनिस अकैडमी से निकाल दिया गया था। लेकिन इसके बाद यूरी अपने जक दोस्त बॉब केन के पास रहने के लिए चला गया।

वे वहाँ पर एक साल तक रहे। वे उनके साथ खाना खाते थे और शारापोवा उनका टेनिस याई इस्तेमाल किया करतीं थीं। इस बीच बंगोउरा से आजाद होने के बाद शारापोवा बहुत अच्छा महसूस कर रहीं थीं। वे पूरे हफ्ते प्रैक्टिस किया करतीं थीं और संडे के दिन भी प्रैक्टिस करतीं थीं। इसका नतीजा यह हुआ कि वे ज्यादातर टूर्नामेंट जीतने लगीं और अमेरिका के टॉप खिलाड़ियों में उनका नाम आने लगा।

दूसरी तरफ बंगोउरा शारापोवा का इस्तेमाल कर के अपनी अकैडमी का एडवर्टाइजमेंट कर रहा था। और जब उधर बोलेटीरी ने देखा कि शारापोवा एक के बाद एक मैच जीते जा रहीं हैं तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ।

उसने उन लोगों को ऑफर दिया कि वो वापस आ कर स्कालरशिप पर उनके यहाँ ट्रेनिंग कर सकती हैं। शारापोवा उस वक्त 11 साल की थीं और उन्होंने इस आफर को अपना लिया। वे वहाँ पर ट्रेनिंग करने के लिए चलीं गईं और उनके पिता केन के साथ रहने लगे।

शारापोवा ने आईएमजी और नाइक के साथ कान्ट्रैक्ट साइन किया।

7 साल की परेशानियों को झेलने के बाद अब वो वक्त आ गया था जिससे शारापोवा और यूरी की जिन्दगी हमेशा के लिए बदलने वाली थी। जब शारापोवा एक के बाद एक मैच जीतने लगी तो इंटरनेशनल मैनेजमेंट ग्रुप (आईएमजी) ने उन्हें साइन किया और वे शारापोवा साल का 100000 डॉलर देने लगे।

इसके अलावा नाइक ने भी उन्हे 50000 डॉलर पर साइन किया। इसके बाद शारापोवा को मैक्स आइसेनबड और रोबर्ट लैंस्ड्राप नाम के दो कोच मिले जिनके साथ रहकर शारापोवा में बहुत सुधार आया।

मैक्स आईएमजी के लिए काम करते थे जिनसे शारापोवा की अच्छी दोस्ती हो गई। इसके अलावा लैंस्ड्राप ने भी शारापोवा को अच्छे से ट्रेन किया। लैंस्ड्राप ने दुनिया के सबसे महान कही जाने वाली खिलाड़ी ट्रेसी आस्टिन को ट्रेन किया था जो कि 1980 के दशक की नंबर वन खिलाड़ी थीं।

वो लास एंजेलेस में रहा करते थे जहां पर शारापोवा और यूरी को हर महीने जाना पड़ता था। वे उनके परिवार के साथ रुकते और उनकी एक बेटी एस्टेल के साथ शारापोवा की अच्छी दोस्ती हो गई। लैंस्ड्राप की जो बात शारापोवा को सबसे अच्छी लगती थी वो था उनका सख्त स्वभाव। वे शारापोवा को बहुत सख्ती से ट्रेन किया करते थे। वे एक ही स्ट्रोक को बार बार प्रैक्टिस कराया करते थे।

कभी कभी वे कड़वी सलाह देते थे, लेकिन शारापोवा को यह सब कुछ अच्छा लगता था क्योंकि इससे ही वे खुद को इतना ज्यादा सुधार पाई। आखिरकार शारापोवा की माँ येलीना को भी अमेरिका आने के लिए वीज़ा मिल गया। अब वे भी उनके साथ फ्लोरिडा में रहने के लिए आ रही थीं।

बढ़ती उम्र के साथ शारापोवा को नई समस्याओं का सामना करना पड़ा।

जब शारापोवा 14 साल की हुई तो उनकी लम्बाई बहुत तेजी से बढ़ने लगी। वे अब इस लम्बे शरीर में कुछ परेशानियाँ महसूस कर रही थीं। इससे उन्हें बार बार हारना पड़ा। लेकिन जल्दी ही उन्होंने इस पर काबू पा लिया।

यह वो उम्र थी जब शारापोवा ने जाना कि हार मान लेने ने आप कहीं नहीं जाते। जब वे हाई स्कूल में थीं तो उनका पहला प्रो टूर्नामेंट हुआ और वे तीन बार लगातार हार गई। हालांकि इसमें उनकी कुछ खास गलती नहीं थी, लेकिन वे थोड़ा धीरे खेल रही थीं।

उनके इस जज्बे ने उन्हें इस गेम को काबू करना सिखा दिया। उन्हें लगने लगा कि उन्हें अपने इस नए शरीर का इस्तेमाल करना चाहिए। वे अब पहले से ज्यादा लम्बी हो गई थीं और उनके कंधे चौड़े हो गए थे। अपने लम्बे हाथों का इस्तेमाल कर के वे अपने हाथों को एकदम पीछे लाकर बाल को मारती थीं जिससे की बाल बहुत तेजी से उनके सामने वाले के पास जाता था।

उनके कोच पीटर मैक्ग्रा ने उनकी इसमें मदद की। उनकी मदद से शारापोवा एक बार फिर से सारे मैच जीतने लगीं।

शारापोवा जूनियर प्लेयर से निकल कर ग्रैंड स्लैम में खेलने लगी।

2003 में जब शारापोवा 16 साल की हुई तो उन्होंने अपना सबसे पहला ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट खेला जिसका नाम आस्ट्रेलिया ओपन था। वो मैच मेलबर्न में हुआ था।

शारापोवा इनमें एक भी मैच ना जीत पाई। लेकिन हार में इतनी ताकत नहीं थी कि वो उनका मन तोड़ सके। अगले ग्रैंड स्लैम की तैयारी करने के लिए वे बहुत से छोटे टूर्नामेंट में भाग लेने लगीं। वे ज्यादा से ज्यादा मैच जीतकर अपनी रैंक को ऊपर उठा रहीं थीं।

जून में जब विम्बलटन शुरु हुआ तो शारापोवा 47वें रैंक पर थीं। विम्बलटन का मैच आस्ट्रेलिया ओपन के मुकाबले बहुत अच्छा गया। वे चार राउंड तक जीतती गयीं। तीसरे राउंड में उन्होंने दुनिया की चौथी रैंक की खिलाड़ी जेलीना डोकिक को हरा दिया।

इससे उनका उत्साह बहुत ज्यादा बढ़ गया और उन्होंने इसका इस्तेमाल बाकी के मैच को जीतने के लिए किया। उसके अगले साल उन्होंने जापान ओपन जीत लिया और अब उनकी रैंक 32 पर आ चुकी थी।

2004 में उन्होंने मियामी ओपन में सेरीना विलियम्स का सामना किया। लेकिन वो हार गई। विलियम्स को हराना कोई आम बात नहीं थी।

2005 में उन्होंने अपना पहला ग्रैंड स्लैम जीता। इसमें उन्होंने विलियम्स को हरा दिया। उनकी इस बार की जीत बहुत शानदार थी।

शारापोवा को विम्बलटन में आकर बहुत अच्छा लगता था। उन्हें लगता था कि वो किसी शाही जगह पर आई हैं।

शारापोवा कहती हैं कि शायद वो लाल कोट वाले गाई उन्हें अच्छे लगते थे या शायद वहाँ का रिवाज उन्हें अच्छा लगता था। वो जो भी था, लेकिन शारापोवा को वहां पर आने के बाद बहुत खुशी मिलती थी।

शारापोवा खुद को सबसे ऊपर रखने के लिए कड़ी मेहनत करने लगीं।

2005 में विम्बलटन का मैच जीतने के बाद शारापोवा दुनिया की नंबर वन खिलाड़ी बन गयीं।

शारापोवा अब जब उन दिनों के बारे में सोचती हैं तो उन्हें लगता है कि वे सारे मैच इसलिए नहीं जीत पाई क्योंकि उन्होंने खुद को पहले से बेहतर बना लिया था या फिर अपने अंदर कोई नई खासियत पैदा कर ली थी।

वे सारे मैच इसलिए जीप पाई क्योंकि वे अब इस गेम को और खुद को अच्छे से समझने लगी थी। अपनी खूबियों और खामियों को जानने की वजह से वो अच्छा खेल पाईं। दुनिया में नंबर वन होने क मतलब यह नहीं था कि शारापोवा अब आराम कर सकती हैं। अब वे खुद को सबसे ऊपर रखने के लिए और मेहनत करने लगीं।

वे यह दिखाना चाहती थीं कि उनकी यह कामयाबी उनकी मेहनत का नतीजा है ना कि उनकी किस्मत का। वे हमेशा अगले मैच पर ध्यान देती थीं। शारापोवा जानती थीं कि उनका मुकाबला अब कुछ ज्यादा मुश्किल होने वाला है क्योंकि अब उनसे मुकाबला करने के लिए दुनिया के सबसे महान खिलाड़ी आएंगे।

2006 के यूएस ओपन में शारापोवा का मुकाबला फ्रांस की अमीली मारेस्मो और जस्टीन हेनिन के साथ हुआ। इसमें हेनिन ने उन्हें चार बार लगातार हरा दिया। शारापोवा अब तीसरे स्थान पर चली गयीं। मारेस्मो सबसे ऊपर और हेनिन दूसरे स्थान पर आ गए। कुछ परेशानियों का सामना करने के बाद शारापोवा ने मारेस्मो को सेमी फाइनल में हरा दिया।

फाइनल का मैच बहुत मुश्किल हुआ, लेकिन आखिरकार शारापोवा ने फिर से अपना दूसरा ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट जीत लिया।

कंधे पर चोट आ जाने की वजह से शारापोवा बहुत सारे मैच हार गईं।

2008 के बाद शारापोवा की जिन्दगी में बहुत सारे बदलाव आए। सबसे पहला बदलाव उनके लिए यह था कि अब उन्हें अपने पुराने कोच लैंस्ड्राप को छोड़ना पड़ा। उन्हें यह बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन फिर भी आगे बढ़ने के लिए कुछ चीज़ों को पीछे छोड़ना पड़ता है।

साथ ही वे अब अपने पिता कि देखरेख से आजाद होना चाहती थीं। वे दिखाना चाहती थीं कि वे अकेले भी बहुत कुछ कर सकती हैं। इसका मतलब यह नहीं था कि अब वे उनसे प्यार नहीं करतीं थीं या उनके साथ रहना नहीं चाहती थीं।

वे अब अपने कैरियर में काफी कामयाब हो चुकी थीं, और अपने पिता के साथ आगे तक नहीं जा सकती थीं। उनके नए कोच अब माइकल जोएस थे। इसके बाद शारापोवा की जिन्दगी में एक बड़ा बदलाव आया।

उनके कंधे में बहुत तेज दर्द होने लगा और बाद में पता लगा कि उनकी कंधे का टेंडन फट गया था और अब उन्हें सर्जरी की जरुरत पड़ेगी। वे इससे बहुत डर रही थीं लेकिन उन्हें पता था कि यह उनके लिए जरुरी है।

सर्जरी के बाद हालात बदल गए। जो शारापोवा कभी लगातार जीता करती थीं, अब वे एक के बाद एक मैच हारने लगीं। उनकी रैंक बहुत तेजी से नीचे आने लगी। इसके बाद वे कुछ प्रैक्टिस टूर्नामेंट में भाग लेने लगीं लेकिन वहाँ भी वे हार रही थीं। शारापोवा को अपने इस नए कंधे के साथ इस खेल को नए तरीके से खेलना सीखना पड़ा। उन्हें अब नए तरीके सीखने थे।

शारापोवा अपनी चोट से उभर कर वापस खेल में सबसे ऊपर आने लगीं।

शारापोवा एक बाल फिर से जीतने के लिए बेताब थीं। वे फिर से एक ग्रैंड स्लैम जीतना चाहती थीं। उन्हें पता था कि सर्जरी से पहले ग्रैंड स्लैम जीतना दूसरी बात थी, लेकिन अगर ले सर्जरी के बाद भी ग्रैंड स्लैम जीत कर दिखा देती हैं तो वे दुनिया पर अपना नाम हमेशा के लिए छोड़ सकती हैं। वे फिर से इस खेल को अपना सब कुछ देने लगीं। धीरे धीरे उनकी रैंकिंग ऊपर आने लगी और वे फिर से दुनिया के टाप फाइव में आ गई।

2011 में वे विम्बलटन के सेमी फाइनल और 2012 में वे आस्ट्रेलिया के फाइनल्स तक आ गई थीं। फिर उन्होंने अपना चौथा ग्रैंड स्लैम जीता। फ्रेंच ओपन में उन्होंने फिर से बाजी मारी और दुनिया की नंबर वन प्लेयर्स में आ गईं। चार ग्रैंड स्लैम जीतने वाली अब तक सिर्फ 9 महिलाएं हैं जिनमें अब शारापोवा का भी नाम था।

यह वो पहला ग्रैंड स्लैम था जिसे शारापोवा ने अपने पिता के बगैर जीत कर दिखाया था। इस ग्रैंड स्लैम में उनका मुकाबला सारा इरानी से हुआ था पो कि इटली की खिलाड़ी थी। इरानी बहुत अच्छी खिलाड़ी थीं लेकिन शारापोवा उस दिन उनसे ज्यादा बेहतर साबित हुई। अपनी सर्जरी के असर से बाहर आकर शारापोवा बहुत अच्छा महसूस कर रही थीं।

2016 में शारापोवा को टेनिस से बैन कर दिया गया।

अब तक सब कुछ अच्छा था। शारापोवा को लग रहा था कि उन्हें अब रिटायर हो कर अपना कैरियर खत्म करना चाहिए। लेकिन तभी उनके यूरीन में से एक मेल्डोनियम नाम का एक ड्रग निकला। इसके लिए उन पर केस किया गया।

मेल्डोनियम को उसी साल की पहली जनवरी को बैन किया गया था। आइटीएफ ने खिलाड़ियों को इसके बारे में अच्छे से नहीं बताया था।

शारापोवा को खुद भी नहीं पता था कि वे उस ड्रग को 16 साल की उम्र से लगातार ले रही हैं। उन दिनों उन्हें लगातार फ्लू हो जा रहा था जिसकी वजह से एक डाक्टर ने मिल्ड्रोनेट नाम की एक दवाई खाने के लिए दी थी जिसे शारापोवा कई सालों से खा रही थीं।

मीडिया में शारापोवा को झूठा और धोखेबाज़ कहा गया। लोगों का कहना था कि वे खेलने के लिए ड्रग्स का सहारा लेती हैं। आइटीएफ और आर्बिट्रेशन पैनल के साथ उनपर दो केस किए गए।

कोर्ट में आइटीएफ के लोग शारापोवा को सुनने के लिए तैयार थे। उन्होंने टेनिस से शारापोवा को 2 साल के लिए बैन कर दिया। लेकिन जब आर्बिट्रेशन पैनल ने कहा कि शारापोवा ने वो ड्रग जान बूझकर नहीं लिया है।

इस बात पर उनकी सजा कम कर के के 15 महीने तक की कर दी गई। शारापोवा अब फिर से गेम में वापस आने के लिए बेताब थीं। पहले तो वे रिटायर होना चाहती थीं लेकिन अब वे फिर से अपने खेल में वापस आना चाहती थीं। वे दुनिया को एक बार फिर से अपना हुनर दिखाना चाहती थीं।

Conclusion

मारिया शारापोवा बचपन से ही टेनिस के लिए अपना जुनून और हुनर दिखाने लगीं। उनके पिता यूरी ने उनके लिए बहुत मेहनत की।

तमाम तरह की समस्याओं को झेलने के बाद शारापोवा 16 साल की उम्र में ग्रैंडस्लैम खेलने लगी। अब तक वे 5 बार ग्रैंडस्लैम जीत चुकी हैं।

आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद,

Wish You All The Very Best.

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