अध्याय 16: बन्दीजनों द्वारा राजा पृथु की स्तुति
श्लोक 1: महर्षि मैत्रेय ने आगे कहा : जब राजा पृथु इस प्रकार विनम्रता से बोले, तो उनकी अमृत तुल्य वाणी से गायक अत्यधिक प्रसन्न हुए। तब वे पुन: ऋषियों द्वारा दिये गये आदेशों के अनुसार राजा की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे।
श्लोक 2: गायकों ने आगे कहा : हे राजन्, आप भगवान् विष्णु के साक्षात् अवतार हैं और उनकी अहैतुकी कृपा से आप पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं। अत: हममें इतनी सामर्थ्य कहाँ कि आपके महान् कार्यों का सही-सही गुणगान कर सकें? यद्यपि आप राजा वेन के शरीर से प्रकट हुए हैं, तो भी ब्रह्मा तथा अन्य देवताओं के समान बड़े-बड़े वाचक और वक्ता भी आपके महिमामय कार्यों का सही-सही वर्णन नहीं कर सकते।
श्लोक 3: यद्यपि हम आपका ठीक से गुणगान कर सकने में असमर्थ हैं, तो भी हमें आपके कार्यों की महिमा के गायन में दिव्य स्वाद प्राप्त हो रहा है। हम प्राधिकार प्राप्त मुनियों तथा पंडितों से मिले आदेशों के अनुसार ही आपकी महिमा का वर्णन करेंगे। फिर भी हम जो कुछ कह रहे हैं, वह अपर्याप्त तथा नगण्य है। हे राजन्, चूँकि आप भगवान् के साक्षात् अवतार हैं, अत: आपके समस्त कर्म उदार तथा सदैव प्रशंसनीय हैं।
श्लोक 4: यह राजा, महाराज पृथु, धार्मिक नियमों के पालन करनेवालों में सर्वश्रेष्ठ है। अत: वह प्रत्येक व्यक्ति को धर्म में प्रवृत्त करेगा और धर्म के उन सिद्धान्तों की रक्षा करेगा। अधर्मियों तथा नास्तिकों के लिए वह महान् दण्ड-दाता भी होगा।
श्लोक 5: यह राजा अकेले, अपने ही शरीर में यथासमय समस्त जीवात्माओं का पालन करने तथा विभिन्न प्रकार के कार्यों को सम्पन्न करने के लिए विभिन्न देवताओं के रूप में प्रकट होकर उनको प्रसन्न रखने में समर्थ होगा। इस प्रकार वह प्रजा को वैदिक यज्ञ करने के लिए प्रेरित करके स्वर्गलोक का पालन करेगा। यथासमय वह उचित वर्षा द्वारा इस पृथ्वीलोक का भी पालन करेगा।
श्लोक 6: यह राजा पृथु सूर्यदेव के समान प्रतापी होगा और जिस प्रकार सूर्यदेव हर एक को समान रूप से अपना प्रकाश वितरित करता है, उसी तरह राजा पृथु अपनी कृपा सबों को संवितरित करेगा। जिस प्रकार सूर्यदेव आठ मास तक जल को वाष्पित करता है और वर्षा ऋतु में प्रचुर मात्रा में उसको लौटा देता है, उसी प्रकार यह राजा भी नागरिकों से कर वसूल करेगा और आवश्यकता के समय इस धन को लौटा देगा।
श्लोक 7: यह राजा पृथु समस्त नागरिकों पर अत्यधिक दयालु रहेगा। यदि एक दीन पुरुष विधि विधानों की अवहेलना करके राजा के सिर पर अपना पाँव रख दे, तो भी राजा अपनी अहैतुकी कृपा से उस पर ध्यान न देकर क्षमा कर देगा। जगत के रक्षक के रूप में यह पृथ्वी की ही भाँति सहिष्णु होगा।
श्लोक 8: जब वर्षा नहीं होगी और जल के अभाव से नागरिक महान् संकट में होंगे तो यह राजवेषधारी भगवान् स्वर्ग के राजा इन्द्र के समान जल की पूर्ति करेगा। इस प्रकार अनावृष्टि (सूखे) से वह नागरिकों की रक्षा कर सकेगा।
श्लोक 9: यह राजा, पृथु महाराज, अपनी प्यारी चितवन तथा अपने चन्द्रमा सदृश मुखमंडल से, जो नागरिकों के लिए अत्यधिक प्यार से सदैव हँसता रहता है, सबों के शान्त जीवन में और वृद्धि करेगा।
श्लोक 10: गायकों ने आगे कहा : राजा द्वारा अपनाई गई नीतियों को कोई भी नहीं समझ सकेगा। उसके कार्य भी गुप्त रहेंगे और कोई यह न जान सकेगा कि वह प्रत्येक कार्य को किस प्रकार सफल बनाएगा। उसका कोष सदा ही लोगों से अज्ञात रहेगा। वह अनन्त महिमा तथा उत्तम गुणों का आगार होगा। उसका पद स्थायी तथा प्रच्छन्न बना रहेगा जिस प्रकार कि समुद्रों के देव वरुण चारों ओर जल से ढके रहते हैं।
श्लोक 11: राजा पृथु का जन्म राजा वेन के मृत शरीर से उसी प्रकार हुआ जिस प्रकार अरणि से अग्नि उत्पन्न होती है। अत: राजा पृथु सदैव अग्नि के समान रहेंगे और उनके शत्रु उनके पास तक नहीं पहुँच पाएँगे। निस्सन्देह, वे अपने शत्रुओं के लिए दु:सह होंगे, वे उनके पास रह कर भी उनके पास नहीं पहुँच पाएंगे, मानो वे दूर रहने के लिए बने हो। कोई भी राजा पृथु को हरा नहीं सकेगा।
श्लोक 12: राजा पृथु अपने प्रत्येक नागरिक के आन्तरिक तथा बाह्य कार्यों को देख सकने में समर्थ होंगे। फिर भी उनकी गुप्तचर व्यवस्था को कोई जान नहीं सकेगा और वे अपनी स्तुति अथवा निन्दा-सम्बन्धी मामलों में सदैव उदासीन रहेंगे। वे शरीर के भीतर स्थित वायु, अर्थात् प्राण के समान होंगे, जो बाह्य तथा आन्तरिक रूप से प्रकट होता है, किन्तु सभी व्यापारों से सदैव निरपेक्ष रहता है।
श्लोक 13: चूँकि यह राजा सदैव धर्मनिष्ठा के मार्ग पर रहेगा, अत: वह अपने पुत्र तथा अपने शत्रु के पुत्र दोनों के प्रति समभाव रखेगा। यदि उसके शत्रु का पुत्र दण्डनीय नहीं है, तो वह उसे दण्ड नहीं देगा, किन्तु यदि स्वयं का पुत्र दण्डनीय है, तो उसे दंडित करेगा।
श्लोक 14: जिस प्रकार सूर्यदेव अपनी प्रकाशमान रश्मियों को आर्कटिक प्रदेश तक बिना किसी अवरोध के बिखेरते हैं, उसी प्रकार राजा पृथु का प्रभाव आर्कटिक क्षेत्र तक के समस्त भूभागों पर होगा और वह आजीवन अविचल रहेगा।
श्लोक 15: यह राजा अपने व्यावहारिक कार्यों द्वारा सबों को प्रसन्न करेगा और उसके सारे नागरिक अत्यन्त प्रसन्न होंगे। इस कारण नागरिकों को उसे अपना शासक राजा स्वीकार करने में अत्यधिक सन्तोष मिलेगा।
श्लोक 16: यह राजा दृढ़संकल्प वाला तथा सत्यव्रती होगा। यह ब्राह्मण-संस्कृति का प्रेमी, वृद्धों की सेवा करने वाला तथा शरणागतों को प्रश्रय देने वाला होगा। यह सबों का सम्मान करेगा और दीन-दुखियों तथा अबोधों पर सदैव कृपालु रहेगा।
श्लोक 17: यह राजा सभी स्त्रियों को अपनी माता के समान सम्मान देगा और अपनी पत्नी को अपने शरीर का आधा अंग (अर्द्धाङ्गिनी) मानेगा। यह अपनी प्रजा के प्रति पिता के समान स्नेही होगा और अपने आपको भगवान् की महिमा का उपदेश करने वाले भक्तों का परम आज्ञाकारी दास समझेगा।
श्लोक 18: यह राजा समस्त जीवधारी प्राणियों को अपने ही समान प्रिय मानेगा और अपने मित्रों के आनन्द को सदैव बढ़ाने वाला होगा। यह मुक्त पुरुषों से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित रहेगा और समस्त अपवित्र व्यक्तियों को कठोर दण्ड देने वाला होगा।
श्लोक 19: यह राजा तीनों लोकों का स्वामी है और सीधे भगवान् ने इसे शक्ति प्रदान की है। यह अपरिवर्तनीय है और परमेश्वर का शक्त्यावेश अवतार है। मुक्त आत्मा तथा परम विद्वान् होने के कारण यह समस्त भौतिक विविधताओं को अर्थहीन मानता है, क्योंकि इनका मूलाधार अविद्या है।
श्लोक 20: यह राजा अद्वितीय शक्तिशाली तथा वीर होगा, जिससे इसका कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं होगा। यह अपने हाथ में धनुष धारण करके विजयी रथ पर चढक़र सूर्य के समान दिखाई देता हुआ भूमण्डल की प्रदक्षिणा करेगा, जो दक्षिण से अपनी कक्षा पर परिभ्रमण करता है।
श्लोक 21: जब यह राजा सारे संसार में भ्रमण करेगा तो अन्य राजा तथा अन्य देवतागण इसे सभी प्रकार के उपहार भेंट करेंगे। उनकी रानियां भी उसे आदि राजा मानेंगी, जो अपने हाथों में चक्र तथा गदा चिह्नों को धारण करता है और उसी के गुणगान करेंगी, क्योंकि वह भगवान् के समान ख्याति वाला होगा।
श्लोक 22: प्रजा का पालक यह राजा अद्वितीय है और प्रजापति देवों के तुल्य है। प्रजा के जीवन निर्वाह के लिए यह गौ रूपी पृथ्वी का दोहन करेगा। यही नहीं, यह अपने बाण की नोक से समस्त पर्वतों को विदीर्ण करके धरती को वैसे ही समतल करेगा, जिस प्रकार स्वर्ग का राजा इन्द्र अपने प्रबल वज्र से पर्वतों को तोड़ता है।
श्लोक 23: जब सिंह अपनी पूँछ ऊपर उठाकर वन में विचरण करता है, उस समय छोटे-छोटे पशु छिप जाते हैं। इसी प्रकार जब राजा पृथु अपने राज्य में भ्रमण करेंगे और बकरों तथा बैलों के सींगों से बने अपने धनुष की टंकार करेंगे जिसका युद्ध में कोई सामना नहीं कर सकता, तो सभी आसुरी धूर्त तथा चोर चारों दिशाओं में छिप जाएँगे।
श्लोक 24: यह राजा सरस्वती नदी के उद्गम स्थान पर सौ अश्वमेध यज्ञ करेगा। अन्तिम यज्ञ के समय, स्वर्ग का राजा इन्द्र यज्ञ के घोड़े को चुरा लेगा।
श्लोक 25: यह राजा पृथु अपने प्रासाद के उद्यान में चार कुमारों में से एक, सनत्कुमार से भेंट करेगा। राजा उनकी भक्तिपूर्वक पूजा करेगा और उनसे सौभाग्यवश उपदेश प्राप्त करेगा जिससे मनुष्य दिव्य आनन्द उठा सकता है।
श्लोक 26: इस प्रकार जब इस राजा के वीरतापूर्ण कार्य जनता के समक्ष आ जाएँगे तो यह राजा अपने विषय में तथा अपने अद्वितीय पराक्रमपूर्ण कार्यों के विषय में सदैव सुनेगा।
श्लोक 27: पृथु महाराज की आज्ञाओं का उल्लंघन कोई नहीं कर सकेगा। सारे जगत को जीतकर वह नागरिकों के तीनों तापों को समूल नष्ट करेगा। तब सारे जगत में उसको मान्यता प्राप्त होगी। तब सुर तथा असुर दोनों उसके उदार कार्यों की निस्सन्देह प्रशंसा करेंगे।