Finite and Infinite Games Book Summary in Hindi – जिंदगी को एक खेल की तरह देखें

Finite and Infinite Games Book Summary in Hindi – 1986 में आई ये बुक हमें लाइफ के दो अलग अलग व्यू पॉइंट से इंट्रोड्यूस करवाती है। लेखक का कहना है कि लाइफ में होने वाली हर एक्टिविटी को फाइनाइट और इनफाइनाइट गेम्स की तरह देखा जा सकता है।

फाइनाइट गेम्स में प्लेयर का फोकस आउटकम पर होता है जबकि इनफाइनाइट गेम्स में गेम में मौजूद डिफरेंट पॉसिबिलिटी पर। लेखक का कहना है कि ये व्यक्ति की अपनी चॉइस होती है कि उसको कौन सा गेम खेलना है।

क्या आप एक फिलॉसफी के स्टूडेंट्स है, क्या आप उन लोगों में से है जो लाइफ के गेम से परेशान हो चुके हैं, या फिर क्या आप उन लोगों में से है जो गेम थ्योरी में इंट्रेस्टेड हैं।

लेखक

James P Carse न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में हिस्ट्री और लिटरेचर के प्रोफेसर रह चुके हैं। इसके अलावा वो CDC की एक रेडियो सीरीज में भी फीचर हो चुके हैं।

Finite and Infinite Games Book Summary in Hindi – जिंदगी को एक खेल की तरह देखें

हम सभी अपनी लाइफ के हर पार्ट को फाइनाइट और इनफाइनाइट गेम्स की तरह देख सकते हैं।

जब आप गेम वर्ड सुनते हैं तो आपके माइंड में क्या आता है? लाज़मी है की क्रिकेट, सुपर मारियो और चेस ये सब आपके माइंड में आते होंगे। लेकिन गेम्स सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। हमारी लाइफ भी एक गेम ही है। और इस गेम को दो तरह से खेला जा सकता है। इस बुक में हम उन दो तरीके के गेम्स के बीच में डिफरेन्स जानेंगे।

पहला जिसमें की रूल्स और गोल क्लियर होते हैं और दूसरा जिसमें क्लियर नहीं होते। कुछ लोग लाइफ को जीरो सम गेम की तरह देखते हैं जिसमें एक विनर होता है और बाकी लूजर और गेम एक फिक्स टाइम के लिए होता है। और कुछ लोग लाइफ को सीरीज को मोमेंटस् की तरह देखते हैं जिसमें बहुत सारी पॉसिबिलिटी होती है।

आपके करियर से लेके सेक्स लाइफ तक ये मैटर करता है कि आप किस तरह का गेम खेलना चाहते हैं। इस समरी में आप जानेंगे कि आखिर क्यों कुछ लोग टाइटल्स पाने के लिए उत्सुक रहते हैं? आखिर क्यों आपके कलीग हर आर्गुमेंट को जीतना चाहते हैं? और और क्यों आपका आईडिया ऑफ टाइम बिल्कुल गलत है?

तो चलिए शुरू करते हैं!

जब हम बच्चों के द्वारा खेलने वाले गेम्स के बारे में सोचते हैं तो हमें लुका छुपी, ट्रुथ और डेयर जैसे गेम्स का ख्याल आता है। जिस प्रकार छोटे बच्चों के गेम्स होते हैं उसी तरह से हम एडल्ट्स के भी अलग अलग तरह के गेम्स होते हैं। एडल्ट के गेम कभी फाइनाइट होते हैं तो कभी इनफाइनाइट। आइये दोनों तरह के गेम्स को अच्छे से समझने की कोशिश करते हैं।

फाइनाइट गेम्स में सब कुछ पहले से डिसाइड होता है। इस तरह के गेम में कुछ लिमिटेशन होती है। फाइनाइट गेम्स में पहले से ही ये पता होता है कि कितने प्लेयर्स खेलने वाले हैं। एक्सटर्नल रिस्ट्रिक्शन के अलावा इस तरह के गेम में इंटरनल रिस्ट्रिक्शन भी होती है जैसे कि गेम के रूल कभी कोई प्लेयर ब्रेक नहीं करेगा और रूल्स को फॉलो करते हुए हर प्लेयर जीतने की कोशिश करेगा।

एग्जाम्पल के तौर पर इलेक्शन को हम फाइनाइट गेम की तरह देख सकते हैं। इलेक्शन के रूल्स पहले से ही सबको पता होते हैं और फिर सबको उसी रूल के एकॉर्डिंग खेलना पड़ता है। इस इलेक्शन के गेम में हर पार्टी की तरफ से एक एक प्लेयर पार्टिसीपेट करता है और फिर एन्ड में जिसको सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं वही विनर होता है।

वहीं दूसरी तरफ अगर बात की जाए इनफाइनाइट गेम्स की तो इस तरह के गेम्स में किसी प्रकार के रूल्स नहीं होते। कोई भी प्लेयर कभी भी गेम में एंटर कर सकता है। और तो और इस गेम में नम्बर ऑफ प्लेयर्स भी कभी फिक्स नहीं होते। जैसे बात करते हैं क्रिकेट की।

क्रिकेट में कौन सा प्लेयर बेस्ट है ये भी एक तरह का गेम ही है। जैसे कि सचिन तेंदुलकर पहले क्रिकेट के बेस्ट प्लेयर थे लेकिन उनके रिटायरमेंट के बाद अब विराट कोहली क्रिकेट में बेस्ट प्लेयर के तौर पर देखे जाते हैं। आने वाले टाइम में कोई और नया प्लेयर आएगा जो इन दोनों से भी अच्छा प्लेयर साबित होगा।

आइये अब देखते हैं कि लाइफ में कैसे हम फाइनाइट और इनफाइनाइट गेम्स को कंसीडर कर सकते हैं।

इनफाइनाइट गेम्स के प्लेयर के लिए गेम में किसी तरह की बाउंडरी नहीं होती लेकिन फाइनाइट गेम में ऐसा नहीं होता है।

हमने शुरू में जाना की फाइनाइट गेम्स में कुछ तरह की बाउंड्री होती है और कुछ पहले से डिसाइड किये गए रूल्स भी होते हैं। लेकिन इनके अलावा भी कुछ इम्पोर्टेन्ट चीजें होती है जो फाइनाइट गेम्स के अंदर कंसीडर की जाती है। इलेक्शन की ही बात करते हैं।

मान लीजिये इलेक्शन में ये रूल है कि सिर्फ दो ही लोग इलेक्शन लड़ सकते हैं और जो सबसे ज्यादा वोट पायेगा वो जीत जाएगा। ऐसे में हो सकता है दो क्रिमिनल्स इलेक्शन में पार्ट लें। और अगर ऐसा हुआ तो रोजाना इलेक्शन होगा और कोई अपनी हार मंजूर नहीं करेगा।

इसलिए फाइनाइट गेम्स को उसको देखने वाली ऑडियंस भी रेगुलेट करती है। ऑडियंस ये तय करती है कि गेम कब खेला जाएगा और उसमें प्लेयर कौन कौन होगा। जैसे कि अगर इलेक्शन की बात करें तो ऑडियंस ये डिसाइड करती है कि कौन से दो प्लेयर इलेक्शन में पार्ट लेंगे और कब इलेक्शन कराया जाएगा। तो इसका मतलब ये है कि फाइनाइट गेम्स के प्लेयर कभी खुद से ये डिसाइड नहीं कर सकते हैं कि उन्हें कब और कैसे खेलना है।

फाइनाइट गेम्स के प्लेयर्स के ऊपर ऑडियंस की तरफ से प्रेसर भी होता है कि उन्हें टाइम रहते गेम फिनिश करना है और उन्हें रूल्स के एकॉर्डिंग खेलना है।

वहीं दूसरी तरफ इनफाइनाइट गेम्स के प्लेयर्स के लिए कोई बाउंडरी नहीं होती। वो खुद डिसाइड करते हैं कि उन्हें कितनी देर तक और किस रूल के साथ खेलना है। इनफाइनाइट गेम में हर मोमेंट पर प्लेयर के लिए नई शुरुआत करने का मौका होता है। इनफाइनाइट गेम्स के प्लेयर्स पर किसी तरह का प्रेसर नहीं रहता। वो अपने तरीके से गेम को खेल सकते हैं।

फाइनाइट प्लेयर अपने गेम में सोसाइटी को कंसीडर करते हैं जबकि इनफाइनाइट गेम्स के प्लेयर कल्चर को।

जब भी हम कोई गेम खेलते हैं तो हम चाहते हैं कि हमारे साथ वाले लोग भी हमारे साथ खेलें या तो हमारे टीम मेट के तौर पर या फिर हमारे अपोनेंट के तौर पर। लेकिन फाइनाइट और इनफाइनाइट गेम्स में प्लेयर अपने साथ खेलने वाले दूसरे प्लेयर्स को अलग अलग नजरिये से देखते हैं।

फाइनाइट गेम्स के प्लेयर जो होते हैं वो सोसाइटी को एक बड़े गेम की तरह देखते हैं जिसमें की छोटे छोटे अलग अलग फाइनाइट गेम्स मौजूद होते हैं जैसे कि स्कूल या फिर कोई और प्रोफेशन। और इन छोटे गेम्स में खेलने वाला हर प्लेयर जीतने की कोशिश में लगा रहता है और जो जीत जाता है उसको किसी टाइटल से रिवार्ड किया जाता है।

सोसाइटी को भी ऐसे प्लेयर को ऑनर देने में अच्छा लगता है। और फिर जो टाइटल प्लेयर ने जीता है इसको डिस्प्ले करने के लिए प्रॉपर्टी शो करनी पड़ती है। मान लीजिये किसी ने एक अच्छा कॉलेज अटेंड किया और फिर वो एक बड़ा लॉयर बन गया। तो फिर अपनी सक्सेस को शो करने के लिए वो एक लक्जरी कार खरीद सकता है जिससे की वो अपनी सिक्सेस डिस्प्ले कर सके।

इनफाइनाइट प्लेयर्स अलग होते हैं। ये लोग सोसाइटी को डेवलपिंग कल्चर की तरह से देखते हैं। इनके एकॉर्डिंग किसी भी टाइटल पर फोकस करने का मतलब है कि प्लेयर का कॉनसन्ट्रेशन प्रीवियस विक्ट्री पर है। इनफाइनाइट प्लेयर्स का फोकस फ्यूचर पर और फ्यूचर में मिलने वाली ऑपर्चुनिटी पर होता है। इसलिए इनका फोकस होता है कि किस तरह से लोगों को अपने गेम में शामिल होने के लिए मोटीवेट कर सकें और अपने विजन को डेवलप करने में उनकी हेल्प ले सकें।

जैसे की अगर बात करें कि इनफाइनाइट प्लेयर को गरीबी हटाने के लिए कुछ कदम उठाना है तो वो ये नहीं करेगा की जाकर कुछ गरीबों को उनके जरूरत की चीज प्रोवाइड करे बल्कि वो ये जानने की कोशिश करेगा कि आखिर इस गरीबी का कारण क्या है और फिर उसे पूरी तरह से खत्म कैसे किया जा सकता है।

फाइनाइट गेम के प्लेयर हमेशा जीतने की कोशिश करते हैं जबकि इनफाइनाइट प्लेयर्स सिर्फ लगातार खेल के जरिये गेम में बने रहने की कोशिश करते हैं।

डॉमिनेट करने की लगातार कोशिश फाइनाइट प्लेयर्स को मजबूत बनाती है। फाइनाइट गेम्स के प्लेयर जीत के जरिये दूसरों पर कंट्रोल गेन करने की कोशिश करते हैं। किसी भी टाइटल को जीतकर फाइनाइट गेम के प्लेयर दूसरों पर अपनी सुपिरियरटी शो करते हैं और उन्हें ओवरशैडो करने का प्रयास करते हैं। यही उनका गेम खेलने का वे होता है।

फाइनाइट प्लेयर्स कन्वर्सेशन को भी एक गेम की तरह देखते हैं और उसको जीतने की कोशिश करते हैं। वो कभी किसी चीज को डिसकस नहीं करना चाहते बल्कि अपने अपोनेंट को एक्सप्लेनेशन देकर उसको कन्विन्स करने का प्रयास करते हैं। इस केस में वो लोग नॉलेज को एक टाइटल के रूप में देखते हैं और उसको जीतने की कोशिश करते हैं। सेक्सुअल रिलेशनशिप को भी फाइनाइट प्लेयर्स एक गेम की तरह देखते हैं और अपने पार्टनर को डॉमिनेट करने की कोशिश करते हैं। इसके लिए वो अपने सेक्सुअल डिजायर को भी नजरअंदाज कर देते हैं।

बात करें इनफाइनाइट प्लेयर्स की तो वो कभी जीतने की कोशिश नहीं करते। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके लिए सिर्फ गेम इम्पोर्टेन्ट होता है। इनफाइनाइट गेम्स में कोई विनर नहीं होता है इसलिए इस गेम के प्लेयर दूसरों से सुपीरियर बनने की कोशिश भी नहीं करते। वो सिर्फ गेम की गरिमा बनाये रखने के लिए खेलते हैं।

इनफाइनाइट गेम्स के प्लेयर के लिए कन्वर्सेशन एक ऐसा इंटरैक्शन है जिसमें की लिसनिंग भी उतनी इम्पोर्टेन्ट है जितनी की स्पीकिंग। इनफाइनाइट प्लेयर्स कभी ये नहीं सोचते कि वो जो कह रहे हैं वो ट्रुथ ही है। वो अपने साथ कन्वर्सेशन करने वाले पार्टनर को पूरा चांस देते हैं ताकि वो भी अपनी नॉलेज शेयर कर सके।

सेक्सुअलिटी में भी इनफाइनाइट प्लेयर्स अपनी और अपने पार्टनर की की फीलिंग्स को समझने और एक्सप्लोर करने की कोशिश करते हैं।

फाइनाइट गेम्स के प्लेयर्स अपने पास्ट के प्रोडक्ट होते हैं जबकि इनफाइनाइट गेम्स के प्लेयर अपने पास्ट को ट्रांसफॉर्म करने की कोशिश करते हैं।

फाइनाइट गेम सही मायने में पास्ट का गेम है क्योंकि इसमें खेलने वाले प्लेयर्स अपने रोल को एज्यूम करके उसके एकॉर्डिंग अपना पार्ट प्ले करते हैं। जैसे मान लीजिए आप किसी फैमिली में सबसे बड़े हैं तो एक फाइनाइट गेम के प्लेयर के तौर पर आपको फैमिली की सारी रिस्पांसिबिलिटी अपने कंधों पर उठानी होगी और ये सब चीजें पास्ट में ही डिसाइड हो चुकी हैं कि फैमिली का सबसे बड़ा इंसान ही फैमिली को गाइड करेगा।

आइये फानाइट गेम की साइकोलॉजी समझने की कोशिश करते हैं। जैसा कि हम जानते हैं की फाइनाइट गेम में हर कोई जीतने के लिए खेलता है तो इसलिए प्लेयर्स हमेशा खुद को प्रूव करने में लगे रहते हैं। और इसलिए फाइनाइट गेम में जीत और हार का कोई मतलब नहीं होता क्योंकि ये तो पास्ट पर डिपेंड करता और अगर कोई प्लेयर अपने पास्ट पर नहीं डिपेंड करेगा तो फिर वो फाइनाइट गेम में एंटर ही नहीं करेगा।

बात करें इनफाइनाइट गेम्स के प्लेयर्स की तो उनका नजरिया बिल्कुल डिफरेंट होता है। वो अपने पास्ट से खुद को अलग करने की कोशिश करते हैं। इनफाइनाइट प्लेयर के लिए पास्ट एक हिस्ट्री होती है। उससे फ्यूचर पर कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि इनफाइनाइट गेम के प्लेयर के लिए फ्यूचर नई पॉसिबिलिटी लेकर आता है। तो अगर किसी फैमिली का सबसे बड़ा व्यक्ति इनफाइनाइट प्लेयर के तौर पर खुद को देखता है तो उसको रिस्पांसिबिलिटी नहीं बल्कि कई अलग अलग गेम्स का स्टार्टिंग पॉइंट नजर आएगा।

आप सभी अपने आप ये डिसाइड कर सकते हैं कि आपको किस तरह का गेम खेलना है और किस तरह का प्लेयर बनना है।

इनफाइनाइट और फाइनाइट गेम्स में बहुत डिफरेंस है लेकिन इसका मतलब ये नहीं की इनफाइनाइट गेम्स के अंदर फाइनाइट गेम नहीं होते। और इसका मतलब ये भी नहीं है कि कोई व्यक्ति एक साथ दोनों तरह के गेम्स को नहीं खेल सकता। और तो और ये आपके ऊपर है कि आप किस तरह का गेम खेलना चाहते हैं।

एक बात जो हमेशा याद रखनी होगी वो ये कि हर गेम में पार्टिसिपेंट्स वॉलंटरी होते हैं। ये बात भी एकदम सही है कि फाइनाइट प्लेयर्स एक्सटरनली चूज़ किये जाते हैं। जैसे की आप लॉयर्स की लिस्ट में तबतक शामिल नहीं हो सकते जब तक आप उस गेम के सारे लिमिट को पार न कर लें। लॉयर के तौर पर आपको पहले से डिसाइड की हुई चीजें करनी होंगी जैसे की कोर्ट जाना, केस लड़ना। लेकिन जरूरी नहीं कि आप ये सब करें। अगर आप चाहते हैं तो ही आपको ये सब करना होगा।

फाइनाइट प्लेयर्स कभी कभी ट्रैप्ड फील करने लगते हैं क्योंकि उनको कुछ पहले से बने हुए रूल और रोल के एकॉर्डिंग प्ले करना होता है। और कभी कभी इस सब की वजह से इंसान गेम में कहीं खो जाता है और ये भूल जाता है कि अगर उसको मिला हुआ रोल उसको पसन्द नहीं आ रहा है तो वो गेम को क्विट कर सकता है। इसलिए अगर कोई लॉयर ऐसा है जो अपनी जॉब पसन्द नहीं करता है तो वो जब चाहे उसे छोड़ कर जो उसे पसन्द है वो कर सकता है।

सबसे इम्पोर्टेन्ट बात ये कि आप जो गेम खेलते हैं वो आपकी पर्सनल चॉइस होती है। आप जबतक चाहे खेल सकते हैं और जब चाहे छोड़ सकते हैं।

Conclusion

लाइफ को इनफाइनाइट और फाइनाइट गेम्स की तरह देखा जा सकता है। फाइनाइट गेम्स के प्लेयर्स का फोकस गेम के आउटकम पर होता है जबकि इनफाइनाइट गेम्स के प्लेयर का फोकस गेम को कंटिन्यू करके उसमें अलग अलग पॉसिबिलिटी ढूढने पर। हालांकि ये प्लेयर पर डिपेंड करता है कि उसे कौन सा गेम कबतक खेलना है।

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आज अपने क्या सीखा ?

अगर आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव है तो मुझे नीचे कमेंट करके जरूर बताये।

आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद,

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