Complete Shri Krishna Katha – जन्म से लेकर गोलोक धाम तक

बलराम का क्रोध

बलराम की पुत्री वत्सला और अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के विवाह से दुर्योधन आग बबूला हो उठा। इसे उसने अपना अनादर समझ लिया। दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मिणी और कृष्ण के पुत्र सांबा का विवाह निश्चित हो चुका था पर अब दुर्योधन इस विवाह से असहमत हो गया। सांबा ने लक्ष्मिणी का हरण कर विवाह करना चाहा पर दुर्योधन ने उसे पकड़कर कैद कर लिया। बलराम ने सांबा को छोड़ने के लिए कहा तब दुर्योधन ने बलराम तथा उनके वंश को अपशब्द कहे। क्रुद्ध बलराम ने अपना रूप बढ़ाया और आकाश को छूने लगे। अपने हल को उन्होंने हस्तिनापुर की धरती में फंसाया और उसे समुद्र की ओर खींचने लगे। लोग त्राहि-त्राहि कर उठे। दुर्योधन ने बलराम से क्षमा याचना करी । बलराम दुर्योधन के मित्र और गदा युद्ध के शिक्षक रह चुके थे। उन्होंने उसे क्षमा कर दिया। हस्तिनापुर लौटा दिया। अंततः दुर्योधन ने सांबा और लक्ष्मिणी को विवाह की अनुमति दे दी।

धृतराष्ट्र को कृष्ण का दिव्य रूप दर्शन

अपनी वनवास की अवधि पूरी कर लेने के बाद पाण्डवों ने इन्द्रप्रस्थ पर अपना अधिकार वापस पाना चाहा। उन्होंने संदेशा भिजवाया पर दुर्योधन ने उनका प्रवेश वर्जित बताते हुए कहा कि चौपड़ में अपना राज्य हारे हुए राजा के लिए जनता के हृदय में कोई सम्मान नहीं है। कृष्ण शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर आए। कृष्ण ने धृतराष्ट्र और दुर्योधन को सचेत करते हुए कहा. ‘आप धर्म के मार्ग पर नहीं चल रहे हैं… इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा… आपका पूरा वंश विनष्ट हो जाएगा!” यह सुनकर क्रोधित दुर्योधन ने कृष्ण को कैद करना चाहा। कृष्ण मुस्कराए और कहा, “तुम नहीं जानते हो कि तुम किसे पकड़ना चाहते हो…” यह कहकर कृष्ण ने अपना विराट रूप धरा… आकाश जितने ऊँचे हो गए, उनके हजारों सिर हो गए, मुख से आग निकलने लगी, लोग हैरान से देखते रह गए। धृतराष्ट्र भी कृष्ण का दिव्य रूप देखना चाहते थे। उनके अनुरोध पर पल भर के लिए कृष्ण ने उन्हें भी दृष्टि देकर अपने रूप का दर्शन कराया।

शांतिदूत कृष्ण

कीचक की मृत्यु के पश्चात् विराट को पाण्डवों की सत्यता का पता चल गया था। उन्होंने आदरपूर्वक पाण्डवों को अपने राज्य में ही रखा। विराट अपनी पुत्री उत्तरा के विवाह की तैयारी करने लगे। उन्होंने अपने सभी संबंधियों, मित्रों और , उनके परिवारों को उत्तरा और अभिमन्यु के विवाह के लिए निमंत्रित किया। बलराम, कृष्ण, सुभद्रा, अभिमन्यु, राजा इन्द्रसेन, काशीराज, पंचालराज द्रुपद, शिखण्डि, धृष्टद्युम्न तथा द्रौपदी के सभी पुत्र उत्तरा और अभिमन्यु के विवाह में आमंत्रित थे। परंपरानुसार विवाह के रस्म हुए। विवाह के पश्चात् विराट के महल में आगे की नीति निर्धारण के लिए सभी राजाओं की सभा हुई। कृष्ण ने दुर्योधन के पास समझौते का प्रस्ताव भिजवाने का प्रस्ताव रखा। जिसके अनुसार एक कुशल व्यक्ति को जाकर दुर्योधन को समझाना था। बलराम नहीं चाहते थे कि युधिष्ठिर, दुर्योधन से स्वयं बातचीत करें। अंततः वहाँ उपस्थित लोगों के एकमत से कृष्ण को शांति दूत बनाकर भेजे जाने पर सहमति हुई।

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