A Brief History of Everyone Who Lived Book Summary in Hindi

अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ एवरीवन हू लिव्ड (A Brief History Of Everyone Who Lived) में आज हम जेनेटिक्स को डिटेल में समझने की कोशिश करेंगे। इसमें हम समझेंगे कि किस तरह से हम जेनेटिक्स की मदद से इतिहास के बारे में जान सकते हैं।

इसके अलावा यह किताब हमें नस्ल के झूठे होने का सबूत देती है। इस किताब में हम जेनेटिक्स की समझ के जरिए नई और चौंका देने वाली बातों के बारे में जानेंगे।

तो चलिए शुरू करते हैं –

लेखक –

एडम रुथरफोर्ड (Adam Rutherford) ब्रिटेन के जेनेसिस्ट, लेखक और ब्रोडकास्टर हैं। उन्होंने नेचर जर्नल में एडिटर का काम लगभग 10 साल तक किया। वे गार्जियन न्यूज़पेपर के लिए अक्सर कुछ लिखते रहते हैं। उन्होंने बहुत सी साइंस डॉक्यूमेंटरी बनाई हैं। इसके अलावा उन्होंने जेनेटिक्स पर कुछ किताबें भी प्रकाशित की है।

A Brief History of Everyone Who Lived Book Summary in Hindi

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए?

कहीं ना कहीं हमारे अन्दर यह जानने की जिज्ञासा रहती है कि इंसानों का जन्म इस धरती पर कैसे हुआ। हम सभी जानना चाहते हैं कि जब इंसान धरती पर आए तो वे कैसे थे। आपके लिए अच्छी खबर यह है आपकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए विज्ञान के पास जेनेटिक्स नाम की एक ब्रांच है।

जेनेटिक्स की मदद से हमने इतिहास के बारे में बहुत सारी दिलचस्प बातें पता की हैं। इसकी मदद से हम यह पता कर पाए हैं कि इंसानों का जन्म इस धरती पर कैसे हुआ। इसकी मदद से हमने और भी बहुत सी बातें पता की हैं जो हम किताब के जरिए जानने की कोशिश करेंगे।

इस किताब में हम इतिहास को विज्ञान की नजर से देखेंगे। इसके अलावा हम बहुत सी दिलचस्प बातों के बारे में जानने की कोशिश करेंगे।

क्या आप विज्ञान की मदद से इतिहास में झाँकना चाहते हैं, क्या आप जेनेटिक्स की पढ़ाई कर रहे हैं, या फिर अगर आप जेनेटिक्स की मदद से खुले राज़ के बारे में जानना चाहते हैं तो ये बुक समरी आपके लिए ही है।

दोस्तों इस बुक समरी में हम जानेंगे कि विज्ञान की मदद से हम इतिहास के बारे में कैसे जान सकते हैं, वातावरण और कल्चर हमारे ऊपर कैसे असर डालते हैं, और नस्ल के बारे में विज्ञान का क्या कहना है etc.

साइंस की मदद से हम इतिहास में आसानी से झाँक सकते हैं।

हमारे इतिहासकारों ने इतिहास को समझने के लिए बहुत सारे तरीके खोजे हैं। उन्होंने अलग अलग चीज़ों का सहारा ले कर इतिहास को समझाने और हमे समझाने की कोशिश की है। लेकिन अगर हम पास्ट में कुछ ज्यादा ही पीछे जाएँ तो उसमें छुपी हुई सच्चाई को जानने के लिए हमें विज्ञान की मदद लेनी होगी।

19वीं और 20 वीं शताब्दी में ग्रेगर मेंडल, फ्रांसिस क्रिक और जेम्स वाटसन ने इंसानों के जीन्स (Genes) को समझने के लिए बहुत सारे तरीके बनाए। उनकी इस टेक्नोलॉजी को हम आगे ले जा कर और अपने DNA को समझ कर अपने इतिहास के रहस्य के बारे में जान सकते हैं।

इंसानों के DNA को हमने सन 2000 में पूरी तरह से समझा लिया था। अब हम इंसान के DNA की तुलना उन जानवरों से मिले हुए DNA से कर सकते हैं जो लाखों साल पहले मर चुके हैं। इससे हम उनके और अपने बीच के संबंधों के बारे में जान सकते हैं।

आज इंसानों को होमो सेपियंस कहा जाता है। लेकिन इनसे पहले बहुत से दूसरे जीव भी थे जिन्हें हम होमो नीएनडरथेलेंसिस, होमो हैबिलिस, होमो एस्टर, होमो हीडेल्बर्जेसिस और होमो इरेक्टस कहते हैं। होमो इरेक्टस पहला ऐसा बंदर था जो सीधे खड़े हो कर चल सकता था।

होमो इरेक्टस अब से लगभग 19 लाख साल पहले इस धरती पर आए थे। वे एफ्रिका में पैदा हुए थे और एफ्रिका में ही होमो सेपियंस भी पैदा हुए थे। अब से 2 लाख साल पहले होमो सैपियस एफ्रिका छोड़कर यूरेसिया गए जहाँ उनकी मुलाकात होमो नीएनडरथैलेंसिस से हुई।

होमो सेपियंस और होमो नीएनडरथैलेंसिस ने मेटिंग की। आज जीन्स को अच्छे से समझने के बाद हमें यह पता लगा है कि एक यूरोपीयन के DNA का 2.7% भाग होमों नीएनडरथेलेसिस से मिलता है। समय के साथ होमो नीएनडरथैलेंसिंस मिट गए पर उनके अंश आज भी हमारे अंदर मोजूद हैं।

जीन्स की मदद से हम पुराने कल्चर और वातावरण के बारे में भी जान सकते हैं।

क्या आपको पता है कि हमारे कल्चर का असर हमारे जीन्स पर होता है? आइए हम इसका एक उदाहरण देखें।

दुनिया में बहुत सारे लोग दूध नहीं पीते क्योंकि वे इसे पचा नहीं पाते। लेकिन कुछ लोगों को दूध पीना बहुत पसंद है। इसका जिम्मेदार हम कल्चर को ठहरा सकते हैं। दूध के लिए हमें लैक्टेस नाम के एक एंजाइम की जरूरत होती है। जो हमारे LCT जीन में मौजूद है। यूरोप के लोगों को छोड़कर ज्यादातर लोगों के लिए यह जीन उनके बचपन के बीत जाने के बाद काम करना बंद कर देता है।

5000 से 10000 BC में यूरोप के लोगों से डेरी के सामानों को बनाना और बेचना शुरू किया। उनके इस कल्चर की वजह से उनके LCT जीन में एक छोटा सा बदलाव आया जिसकी वजह से वे दूध को पचाने के काबिल बन गए।

इस क्षमता की शुरुआत स्लोवेकिया, पोलैंड या हंगरी के आस पास कहीं हुई थी। इसके अलावा अलग अलग बदलाव की वजह से एफ्रिका और एशिया के लोगों में भी यह क्षमता आ गई। यह क्षमता हमारे लिए काफी जरुरतमंद साबित हुई क्योंकि इसी की बदौलत हम आज जिन्दा हैं ।

इसके अलावा वातावरण का भी हमारे ऊपर बहुत असर पड़ता है। इसका एक अच्छा एक्साम्पल स्किन कलर है। यूरोप के लोग कुछ ज्यादा ही गोरे होते हैं जबकि एफ्रिका के लोग बहुत काले होते हैं। काला रंग तेज धूप में रहने की निशानी है। सारे होमो सेपियंस का जन्म एफ्रिका में हुआ था फिर भी यूरोप के रहने वाले इतने गोरे क्यों हैं?

जब हमने हड्डियों की जाँच की तो हमें पता लगा कि 7700 साल पहले सवीडन के आस पास रहने वाले लोगों के जीन जब आपस में मिले तो उनकी चमड़ी का रंग हल्का हो गया, उनकी बालों का रंग भी सुनहरा हो गया और उनकी आँखों का रंग नीला हो गया।

DNA की मदद से हम हमारे वंश या जनजाति का पता नहीं लगा सकते।

कोलम्बस के अमेरिका आने से पहले वाईकिस योद्धा वहाँ आ चुके थे। लेकिन उन्होंने वहाँ के लोगों को परेशान करने के बारे में नहीं सोचा। अमेरिका के लोग अमेरिका में कोलम्बस के आने से 20000 साल पहले से रहने का दावा करते हैं। जीन्स को समझ कर हम यह बता सकते हैं कि अलग अलग देश के लोगों के बीच क्या संबंध है।

29,000 BC से 14,000 BC के समय हमारी घर्ती इतनी ठंडी थी कि पूरा नार्थ हेमिस्फीयर ग्लेशियर से ढका हुआ था। इस समय के दौरान साइबेरियन एशिया के लोगों ने रशिया और अलस्का के बीच के रास्ते को तय करने के लिए जमे हुए ब्रिज का इस्तेमाल किया। वहाँ से वे दक्षिण की तरफ बढ़े जहाँ वे पूरे द्वीप पर फैल गए। जीन्स की मदद से हम यह सब पता कर पाए हैं।

दक्षिण और उत्तर में रहने वाले अमेरिका के लोगों के जीन्स एक जैसे ही हैं। उनका संबंध ग्रीनलैंड में रहने वाले लोगों से है जो यह दिखाता है कि वे एक दूसरे से संबंधित हैं। श्रीनलैंड के लोग खाने में सिर्फ मछलियाँ खाते थे जिनमें फैटी एसिड पाया जाता था। इस फैटी एसिड को अनसैचुरेटेड फैट में बदलने के लिए उनके अंदर में FADS नाम के जीन्स पाए जाते थे। यह FADS जीन अमेरिका में रहने वालों में भी पाया जाता है जो यह दिखाता है कि दक्षिण और उत्तर में रहने वाले लोगों के पूर्वज ग्रीनलैंड के लोग ही थे।

DNA से हम इस बात का पता नहीं लगा सकते कि हम किस जनजाति से संबंधित हैं। बहुत सारी कंपनियाँ इस बात का दावा करती हैं का वे आपके पूर्वजों के बारे में बता सकती हैं लेकिन ऐसा नहीं है।

ऐसी कंपनियाँ आप से कुछ पैसे लेती हैं लेकिन इनके नतीजों पर हम भरोसा नहीं कर सकते। ऐसा इसलिए क्योंकि इसकी कोई भी वैज्ञानिक बुनियाद नहीं है। सभी लोग आपस में मिक्स हो चुके हैं और ऐसे में बहुत सारी जातियों के अंश हमारे अंदर मौजूद हैं जिससे हम यह पता कभी नहीं लगा सकते कि हम किस जाति से संबंधित हैं।

हम सभी का संबंध कहीं ना कहीं शाही खानदान से है।

जोसेफ चैंग (Joseph Chang) येल यूनिवर्सिटी के स्टैटिस्टीशियन हैं जिन्होंने गणित की मदद से यह पता लगाया कि हम शाही खानदानों से किस तरह संबंधित हैं। ऐसा करने के लिए उन्होंने यह पता लगाया कि हम कितने साल पीछे जाएँ जिससे हमें सभी लोगों के पूर्वज मिल जाएँ। इसका जवाब था सिर्फ 600 साल पीछे।

इसका मतलब है अगर हम सभी लोगों के पूर्वजों को एक पेपर पर बना कर लगभग 600 साल पीछे तक ले जाएं तो हम देखेंगे कि सभी लाइन आपस में मिल रही हैं और हम सभी एक दूसरे से संबंधित हैं।

लेकिन अब आपके दिमाग में सवाल उठ रहा होगा कि हमारे दो पैरेंट्स हैं, उन दोनों के चार पैरेंट्स थे, उन चार के आठ पैरेंट्स थे इसका मतलब हमारे करोड़ों पूर्वज हो सकते हैं। फिर हम सभी शाही खानदान से कैसे संबंधित हैं?

इसका जवाब है कि 9वीं शताब्दी में रहने वाला हर व्यक्ति हमारा पूर्वज है। वे सभी हम से किसी ना किसी तरह से जुड़े हुए हैं। यूरोप के रहने वाले चार्लमेन 18 बच्चों के पिता थे। इस हिसाब से देखा जाए वे यूरोप में रहने वाले हर एक व्यक्ति के पूर्वज हैं। एशिया में रहने वाले लोग चंगेज़ खान से से संबंधित हैं और एफ्रिका में रहने वाले नेफर्टिटि से। हम में से हर किसी का पूर्वज एक राजा था।

लेकिन हमारे सभी पूर्वज शाही खानदान से नहीं थे जो कि एक अच्छी बात है। अगर आपके सभी पूर्वज शाही परिवार से होते तो शायद आज आप यह नहीं पढ़ रहे होते। आइए देखें क्यों।

पहले के समय के शाही लोग अपने वंश को शुद्ध रखने के लिए अपने ही घर में शादी कर लिया करते थे। इसकी वजह से उनके अंदर जिन्स से संबंधित बीमारियाँ पैदा होने लगी। इसका एक अच्छा उदाहरण हैं स्पेन के चार्ल्स द्वितीय। उनकी बीमारी कुछ ऐसी थी कि वे पिता नहीं बन सकते थे।

इसकी वजह यह थी कि उनके पूर्वजों की संख्या सिर्फ 82 थी जबकि किसी आम आदमी के पूर्वजों की संख्या 254 होते है। उनके परिवार के लोग आपस में ही शादी कर लिया करते थे, जिससे उनके पूर्वजों की संख्या कम हो गई और वे अपाहिज हो गए।

नस्ल का विज्ञान से कोई लेना देना नहीं है।

काफी समय तक हमारे अंदर यह वहम रहा है कि विज्ञान भी नस्ल को मानता है। लेकिन यह सच नहीं है। इस सच तक पहुंचने में हमें कुछ समय लग गया। सच यह है कि एक ही नस्ल के लोगों में जितने अंतर पाए जाते हैं उतने अन्तर दो नस्ल के लोगों में नहीं पाए जाते।

इसका खुलासा रिचार्ड लेवोटिन (Richard Lewontin) ने किया था। उन्होंने अलग अलग लोगों के खून का सैंपल लिया और पाया कि एक ही नस्ल के लोगों के खून में ज्यादा अंतर था।

लेकिन बहुत सारे लोग इस गलतफहमी में थे कि कुछ खास नस्ल के लोगों में कुछ खास खूबियाँ होती है लेकिन ऐसा नहीं है। इन में से एक थे निकोलस बैंड जिनके हिसाब से हमारा DNA हमारी सफलता के लिए जिम्मेदार है। विज्ञान के हिसाब से नस्ल का कोई अस्तित्व नहीं है।

18वीं और 19वीं शताब्दी के वैज्ञानिक जैसे जोहैन ब्लमेनबैच ने इंसान को पाँच मुख्य नस्ल में बाँटा था इनका नाम था कोकेसियन, मंगोलियन, एथियोपियन, मलयन और नेटिव अमेरिकन लेकिन 2002 में इन सभी बातों को स्टैनफॉर्ड के साइंटिस्ट नोह रोसेंबर्ग ने गलत साबित कर दिया।

रोसेंबर्ग ने 1056 लोगों के जेनेटिक सैंपल लिए जो 52 अलग अलग जगहों पर रहा करते थे। उन्होंने कंप्यूटर की मदद से इन सैंपल्स को अलग अलग करने की कोशिश की। जब उन्होंने कंप्यूटर से उन्हें पांच भागों में बाँटने के लिए कहा गया तब उसने ऊपर दिए गए पांच भागों में उसे बाँटा।

लेकिन जब कंप्यूटर को दो, तीन या चार भागों में बाँटने के लिए कहा। गया तब कंप्यूटर ने उसे एकदम अलग तरह से बाँटा। ठीक उसी तरह से जब उन्होंने कंप्यूटर से उसे 6 भागों में बाँटने के लिए कहा तब कंप्यूटर ने एक नई नस्ल को बनाया जो पाकिस्तान की एक नस्ल से मिलती जुलती थी।

इस एक्सपेरिमेंट का नतीजा यह निकला कि इंसानों को हम जितने चाहे उतने भागों में बाँट सकते हैं। इससे हम यह नतीजा भी निकाल सकते हैं कि हर व्यक्ति एक दूसरे से अलग है। इसमें नस्ल का कोई काम नहीं है।

इंसान के जेनेटिक कोड को समझने के बाद हमने बहुत सी बातों का खुलासा किया है।

26 जून 2000 में बिल क्लिंटन ने बहुत सारे वैज्ञानिकों को वाइट हाउस पर बुलाया और यह घोषणा की कि हमने इंसान के जेनेटिक्सको पूरी तरह से समझ लिया है। यह एक बहुत बड़ी खोज थी क्योंकि इसकी वजह से हमें बहुत सारी बातें पता लगी। वैज्ञानिकों ने सिर्फ आठ सालों में इस काम को अंजाम दिया था। आइए देखें कि इससे हमें क्या क्या पता लगा।

सबसे पहली बात हमें यह पता लगी कि हमारे जीनोम में उतने जीन्स नहीं हैं जितना हम सोचते थे। इससे पहले यह माना जाता था कि हमारे अन्दर लगभग 2 लाख जीन्स हैं। लेकिन इस डिकोडिंग के बाद पता चला कि हमारे जीनोम में सिर्फ 20000 जीन्स होते हैं। केले और राउन्डवॉर्म में हम से ज्यादा जीन्स पाए जाते हैं।

दूसरी खोज यह हुई कि हमारे ज्यादातर DNA का कोई काम नहीं होता। हमारे शरीर के सिर्फ 2% DNA में पढ़ने लायक जीन्स हैं। बाकी के जीन्स बेकार हैं। इन्हें हमने जंक DNA का नाम दिया है। हालाँकि अभी तक यह साफ साफ पता नहीं चल पाया है कि क्या वे पूरी तरह से बेकार हैं या फिर उनका कुछ काम है।

आखिरी बात हमें यह पता लगी कि किसी खास बीमारी के लिए जीन्स जिम्मेदार नहीं हैं। इससे पहले यह माना जाता था कि कुछ खास जीन्स की वजह से कुछ खास लक्षण या बीमारियाँ जैसे कैंसर होती हैं, लेकिन ऐसा नहीं है।

इसे साबित करने के लिए जीनोम वाइड एसोसिएशन स्टडीज़ (GWAS) ने हजारों लोगों के जीन्स पर स्टडी की जिनकी मानसिक स्थिति एक जैसी थी। उन्होंने देखा कि उनकी मानसिक स्थिति के लिए कोई एक जीन जिम्मेदार नहीं है बल्कि हजारों जीन्स मिलकर किसी मानसिक स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं।

जीन्स बहुत सारी चीजों के लिए जिम्मेदार होते हैं।

आजकल इंटरनेट पर जील्स के बारे में बहुत सी अफवाहें फैल रही हैं जो कि बिल्कुल झूठी हैं। उसमें गार्जियन का एक आर्टिकल है जिसमें लिखा है कि वैज्ञानिकों ने ऐसा जीन खोजा जो ड्रग्स की लत के लिए जिम्मेदार है। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है।

अक्सर हम एक ही जीन को किसी खास व्यवहार की वजह मान लेते हैं। डेविंस ब्रेडली वालड्राउप (Davis Bradley (Waldroup) के साथ ऐसा ही हुआ था। उसके बारे में यह कहा गया कि उसके MAO-A जीन में खराबी आ गई है। जिसकी वजह से उसके अन्दर गुस्से और खून खराबे की भावना बढ़ गई। इसी की वजह से उसने अपने दोस्त की पत्नी की हत्या की और अपनी पत्नी की जान लेने की कोशिश की।

डेविड के वकीलों ने कोर्ट में यह बता कर उसे आजादी दिलाई लेकिन उसके ऐसे व्यवहार के लिए कोई एक जीन जिम्मेदार नहीं है। हमारे किसी भी व्यवहार के लिए बहुत सारे जीन्स मिलकर जिम्मेदार होते हैं। डेविड का केस झूठ या गलतफहमी पर आधारित था।

बहुत ही कम हालातों में ऐसा हो सकता है कि हमने जीते जी जो गुण अपने अन्दर पैदा किए हैं वह हमारे बच्चों के अन्दर चला जाए। इसका एक एक्साम्पल हमे वर्ल्ड वार 2 से समय देखने को मिलता है जब नाज़ियों ने एक जगह पर खाने की सप्लाई बंद कर के वहाँ के लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया था।

इन हालातों में कुछ लोग जिन्दा बच गए थे। बचने के बाद उन्हें बहुत सी बीमारियाँ झेलनी पड़ी। कुछ सालों के बाद जब उनके बच्चे पैदा हुए तो उन्हें भी मोटापे और डाइबिटीस जैसी बीमारियाँ हो गई। इससे हम यह कह सकते हैं कि जिन्दगी में हमने जिन लक्षणों को अपने अन्दर जगह दी है वे हमारे बच्चों तक जा सकती हैं।

डार्विन के बाद साइंस लगातार इस बात को झूठा बताते आई है। लेकिन आज हम एपिंजेनेटिस नाम के ब्रांड में इन लक्षणों के बारे में पढ़ते हैं। ऐसे लक्षण बहुत कम देखने को मिलते हैं और दो या तीन पीढ़ियों के बाद इनका असर खत्म हो जाता है।

नेचुरल सिलेक्शन की प्रॉसेस धीमी हो गई है लेकिन इंसानों में अब भी बदलाव आ रहे हैं।

आज हम टेक्नोलॉजी से घिरे हुए हैं जिसने हमें बहुत सारी सुविधाएँ और ताकतें दी हैं। साइंस की मदद से हमने अलग अलग बीमारियों से निपटने का तरीका ढूंढ लिया है जिससे नेचुरल सिलेक्शन की प्रक्रिया धीमी हो गई है। लेकिन फिर भी हमारे शरीर के अन्दर हर पीढ़ी के साथ कुछ बदलाव आ रहे हैं।

हर इंसान का DNA उसके माता और पिता के DNA से मिल कर बना होता है जिसकी वजह से उसके अन्दर कुछ ऐसे गुण पैदा होते हैं जो उनके माता या पिता किसी में भी नहीं थे। इसका मतलब यह है कि हर पीढ़ी के साथ इस धरती पर एक ऐसा इंसान पैदा हो रहा है जिसके पास कुछ अलग खूबियाँ हैं।

लेकिन ये सारे बदलाव अच्छे नहीं हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन के जोश एकी (Josh Akey) ने देखा कि हाल में जो DNA में बदलाव आए हैं उनकी वजह से प्रोटीन का बनना कम या एकदम खत्म हो गया है। नेचुरल सिलेक्शन की मदद से सिर्फ फायदेमंद गुण वाले लोग ही जिन्दा बचते और जिनमें इस तरह के नेगेटिव गुण पैदा होते हैं वे मर जाते।

हमने अपने जीने के हालातों को इतना बदल दिया है कि नेचुरल सिलेक्शन की प्रक्रिया बहुत धीमी हो गई है। इंसान बीमारियों और बूढ़ापे का सामना कर के हमेशा के लिए अमर होना चाहता है। इस टेक्रोलॉजी के बढ़ने की वजह से हम नेगेटिव गुण वाले लोगों को भी बचा पा रहे हैं और उनका इलाज कर पा रहे हैं।

इंसान आज भी पैदा हो रहे हैं और उनके पैदा होने से उनके अन्दर कुछ बदलाव आ रहे हैं। यह प्रक्रिया हमेशा चलती रहेगी।

Conclusion

जेनेटिक्स की मदद से हमने इतिहास को अच्छे से जानने की कोशिश की है।

इसकी मदद से हमने नस्ल की पूरानी और बेबुनियाद बातों को झूठा बता कर सभी इंसानों को एक समान साबित किया है।

इसके अलावा हमने जेनेटिक्स की मदद से इंसानों के शरीर को अच्छे से समझा और इसके बारे में अनोखी बातें पता की हैं।

तो दोस्तों आपको आज का हमारा यह बुक समरी कैसा लगा ?

क्या आपने यह A Brief History of Everyone Who Lived Book Summary in Hindi पहले पढ़ा है?

आपने आज क्या सीखा?

क्या आपके मन में अभी भी कुछ सवाल है या आप हमें कोई भी सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट में जरूर बताये।

आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद,

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