क्या आप जानते है कि हम सब के अंदर पोजिटिव एनेर्जी का एक स्लीपिंग जायंट मौजूद है, जो हमारे इनर वर्ल्ड में डीप कहीं सो रहा है. क्या आप को मालूम है अपने अंदर के इस जायंट को जगाकर अपनी लाइफ की सारी प्रॉब्लम्स, पूरी ताकत और कभी ना खत्म होने वाले पैशन के साथ कैसे टेकल करे?
बहुत से लोगो को ये बात पता ही नहीं होती, कम से कम ये मारवेलस बुक पढने से पहले तो बिलकुल भी नहीं जो लिखी है एंथोनी रॉबिन्स ने.
इस बुक में रॉबिन्स ने ऐसी टेक्नीक्स की एक पूरी वैरायटी और रेलेवेंट एडवाइस दी है जिसे आप यूज़ करके सक्सेस और हैप्पीनेस की अपनी डिजायर पूरी कर सकते है.
हमने पूरी कोशिश की है कि हम आपके लिए “अवेकन द जायंट विदीन” बुक में से ऐसे मोस्ट इम्पोर्टेन्ट, एशेंशियल आईडियाज़ पढ़ कर छांटे है जो हम आपके सामने पेश कर सके, और सबसे इम्पोर्टेन्ट बात ये है कि हमने इन सब आईडियाज़ को डे टू डे की रियल लाइफ स्टोरीज और सिचुएशंश के थ्रू समझाने की कोशिश की है.
Awaken The Giant Within Book Summary in Hindi
बेलेन्स्ड एक्सपेक्टेशन
इस एक्सप्रेशन के साथ हम कहेंगे कि एक्सपेक्टेशन और स्टैंडर्ड्स एक्सट्रीमली वैल्यूएबल चीज़े है जब उन्हें मोटीवेटर की तरह किसी एक पर्टीक्यूलर गोल तक पहुँचने के लिए यूज़ किया जाए.
हालांकि स्टैंडर्ड्स इतने हाई होने चाहिए कि हमें बार बार चेलेंज कर सके और आगे बढ़ने के लिए एंकरेज करे.
हाई और परफेक्शनिस्ट स्टैंडर्ड्स और ऐसे लो स्टैण्डर्ड जो हमारे लिए कोई चेलेंज नहीं रखता, इनके बीच एक परफेक्ट बेलेंस करना काफी मुश्किल है.
ये दोनों अगर एक्सट्रीम्स हो तो हमें लैक ऑफ़ डिजायर और मोटिवेशन की तरफ ले जाते है. जैसे एक्जाम्पल के लिए रिलेटिवली हाई स्टैण्डर्ड रखने के मतलब है कि हमें कोई भी चीज़ बहुत जल्द फेलियर लग सकती है, भले ही वो ना हो.
इसके अपोजिट अगर हम लो स्टैण्डर्ड रखेंगे तो हमे कोई काम करने में वो मज़ा नहीं आएगा क्योंकि वो ईजी होगा, उसमे कोई चेलेंजेस नहीं होंगे.
पहले हम देखेंगे कि कैसे अनरीजनेबल (बहुत ज्यादा ओप्टीमिस्टिक और बहुत ज्यादा पैसीमिस्टिक) एक्सपेक्टेशन किसी भी ऐसी कोशिश बर्बाद कर देती है जो अदरवाइज़ प्रोमिसिंग हो सकती थी, वियतनाम वार की स्टार्टिंग में अमेरिकन आर्मी हाई स्पिरिट में थी.
क्यों ना होती आखिरकार ये दुनिया की सबसे पॉवरफुल कंट्री के सोल्जर जो थे. उनके पास मोस्ट एडवांस और बेस्ट टेक्नोलोजी थी, उनके पास मोस्ट टेलेंटेड ऑफिसर थे, उनकी ट्रेनिंग का कोई मुकाबला नहीं था. हार उनका ऑप्शन थी ही नहीं क्योंकि उन्हें जीतने का पूरा भरोसा था. इतना ज्यादा कि उन्होंने अपने दुश्मन को कमजोर समझ लिया था. एक सब-ह्यूमन लेवल तक प्रैक्टिकली उन्हें बहुत छोटा समझा.
दुसरे वर्ड्स में कहे तो वियतकोंग ( वियतनाम कम्यूनिस्ट आर्मी) अमेरिकन आर्मी को दुश्मनी के लायक नज़र ही नहीं आ रही थी. यू. एस. आर्मी ने वार स्टार्ट होने से पहले ही इसे एक तरह से जीता हुआ समझ लिया था.
और यही बात शायद उनके सिरियस लैक ऑफ़ डिसप्लीन की वजह भी बनी और अल्टीमेटली इसने वियतनाम वार को एक होर्रिबल कचरा बना डाला था.
अगर सिचुएशन को ज्यादा थोरोली एनालाइज किया जाता तो शायद यू.एस. आर्मी इस वार को विनिंग की अप्रोच से देखती ही नहीं. तो इस स्टोरी का एक्जाम्पल देकर हम ये कहना चाहते है कि : अ बैटल केन नोट बी वोन बीफोर इट इवन स्टार्टेड यानी किसी भी लड़ाई की शुरुवात से पहले ही इसकी जीत तय नहीं की जा सकती.
अब जब हम किसी भी सिचुएशन को काफी क्रीटिकली वे में अप्रोच करते है तब भी हो सकता है कि जिस तरीके से इसे एनालाइज किया गया है उसमे कुछ मिस्टेक हो. अब जैसे मान लो कोई अपने लिए एक्स्ट्रीमली लो स्टैण्डर्ड रखता है जिससे उसका काम ईजीली हो जाता है.
लेकिन भले ही ये सारे काम पूरे हो रहे है लेकिन इन्हें करने में कोई मज़ा नहीं आता, क्योंकि इसमें कोई चेलेंज तो है ही नहीं. ये कई बार तब होता है जब लोग एक्स्ट्रीमली अनकांफिडेंट होते है और उन्हें अपने अंदर की एबिलिटीज़ पर भरोसा नहीं होता.
कोशिश करने (जिसमे हार भी मुमकिन है ) के बजाये अपने लिए लोअर स्टैण्डर्ड सेट करना बहुत ईजी होता है.जब लोग फेल होने से डरते है ना तो उन्हें लोअर स्टैण्डर्ड की चीजों पर काम करना ज्यादा लोजिकल लगता है क्योंकि इसमें फेल होने के खतरे कम होते है और थोडा प्राइड भी फील होता है कि चलो हमने कुछ तो हासिल किया. शायद आपने नोटिस किया हो जब भी हमे मौका मिलता है हम आईडियाज़ और कॉन्सेप्ट्स को पोपुलर लोगो का एक्जाम्पल देकर यूज़ करते है.
लास्ट कुछ एक्ज़म्प्ल्स में हमने देखा कि कैसे अनबेलेन्स्ड एक्सपेक्टेशन और स्टैंडर्ड्स स्कसेस का कोई भी चांस बर्बाद कर सकते है. अब हम इसे एक और पोपुलर पर्सन के एक्जाम्पल से देखने की कोशिश करते है- मैकोले कुल्किन. हम सब उनकी स्टोरी जानते है – एक अमीर और यंग आदमी जो ड्रग्स के चंगुल में फंस जाता है.
हालाँकि हम एक दूसरा पर्सपेक्टिव ले सकते है. तो क्या हम ये कह सकते है कि कई सारे ब्लोक बस्टर्स, खासतौर पर होम अलोन सीरीज़ के बाद वो इस सबसे एकदम बोर हो गए और अपना स्टैण्डर्ड घटा दिया? सिम्पली बोले तो वो 13 साल की एज से ही सक्सेस की सीढियां चढने लगे थे. और सक्सेस की तरफ लगातार बढ़ने की इस आदत का चार्म अब ओवर होता जा रहा था उनके लिए. जैसे जैसे फ़िल्मिंग रूटीन का बर्डन उन पर बढ़ता गया, उनका एक्क्टिंग स्टैण्डर्ड घटता गया- और अल्टीमेटली वो एक वेस्टेड टैलेंट बनके रह गए.
हाई सेट स्टैण्डर्ड रखना भी कोई ज्यादा हेल्पफुल नहीं होता है. ये भी उतना ही हार्मफुल है जितना कि लो सेट स्टैण्डर्ड. ये चीज़ आप परफेक्शनिस्ट लोगो में देख सकते है. वो अपने लिए इतने अनरियेलिस्टिक स्टैण्डर्ड सेट कर लेते है कि जोकि कभी पोसिबल ही नहीं होते. जैसे एक्जाम्पल लेते है, एक आर्टिस्ट है जो परफेक्शनिस्ट है. तो अब ये आर्टिस्ट कभी भी अपने काम से सेटिसफाई नहीं होगा.
क्योंकि उसे कुछ ना कुछ कमी लगती रहेगी और वो उसे ठीक करता रहेगा. उसके लिए कोई भी चीज़ कम्प्लीट नहीं हो पाती इस वजह से फाइनल एक्सपोजीशन हमेशा पोस्टपोन होता रहेगा. और लास्ट में होगा ये कि वो परफेक्शनिस्ट आर्टिस्ट तंग आकर अपना काम ही छोड़ देगा.
लियोनार्डो डा विन्ची को शायद परफेक्शनिस्ट बोला जा सकता है क्योंकि अक्सर उन्हें छोटी सी पेंटिंगफिनिश करने में ही सालो लग जाते थे, जैसे कि मोनालिजा जिसे बनाने में उन्होंने 4 साल लगा दिए थे. अपनी इस आदत की वजह से लियोनार्डो उतने प्रोडक्टिव और फर्टाइल नहीं बन सके जो वो बन सकते थे.
जो लोग हाई स्टैण्डर्ड सेट करते है, अक्सर ऐसे लोग खुद की इररेशनल डिमांड्स पूरी करने के चक्कर में बार-बार फेल होते रहते है और फिर उन्हें बड़ी डिसअपोइन्टमेंट होती है. यहाँ हम यूसेन बोल्ट की स्टोरी बताना चाहेंगे. जैसा सब जानते है उसेन बोल्ट हिस्ट्री में सबसे फ़ास्ट रनर है.
छोटी सी एज से ही वो अपने साथ के बच्चो से कहीं ज्यादा तेज़ दौड़ते थे. और जब उसेन बोल्ट बड़े हुए और एक प्रोफेशनल एथलीट बने, उन्होंने लोगो से रेस करना छोड़ दिया क्योंकि अब वो टाइम से रेस लगाते थे. और ये रेस कोई जीत नहीं सकता. यहाँ तक कि जब उन्होंने अपना पहला वर्ल्ड रिकॉर्ड सेट किया, उनके लिए इससे भी बैटर करने को था – दुसरे वर्ड्स में बोले तो उनकी परफोर्मेंस इम्प्रूव हो सकती थी, वो और तेज़ दौड़ सकते थे. इसलिए कुछ टाइम बाद ही उन्होंने खुद से ही एक्सट्रीमली हाई एक्सपेक्टेशन रख ली या कहे कि लोगो ने उनसे रख ली थी.
फिर जब भी वो कोई रेस में दौड़ते हर कोई उनसे अपना ही सेट किया हुआ करंट वर्ल्ड रिकोर्ड तोड़ने की उम्मीद करता. लेकिन ये भी गौर करने लायक है कि किसी भी ह्यूमन के लिए ये पोसिबल नहीं है कि वो बगैर किसी सेट बैक के एक के बाद एक बैटर रिजल्ट दे.
इसलिए अल्टीमेटली जब उसेंन बोल्ट खुद से ही डिसअपोइन्टमेंट होने लगे- बेड रेसेस, जो उन्हें अपने बारे में एक्स्ट्रीमली बेड फील कराती थी, तो उन्हें लगा कि वो अपने मोस्ट इम्पोर्टेन्ट गोल में बुरी तरह फेल हो गए है. सिंपली कहे तो उन्होंने इन मामूली फेलर्स को इतना बड़ा-चढ़ा दिया कि इसे वो अपनी लाइफ की सबसे बड़ी डीफीट समझने लगे.
द इम्पोर्टेंस ऑफ़ डिसीज़न (डिसीज़न की इम्पोरटेंस)
ऐसा लगता है कि एंथोनी रॉबिन्स लाइफ में डिसीजंस की इम्पोर्टेन्ट को ज्यादा बड़ी नहीं समझते कि हर रोज़ हम जो डिसीज़न लेते है वो हमारी लाइफ और फेट को इन्फ्लुयेंश करते है. आपके लिए इसे ईजी बनाते हुए ताकि आप अपने डिसीजन्स को कण्ट्रोल कर सके, एंथोनी रॉबिन्स ने इन्हें 3 सेपरेट ग्रुप्स में डिवाइड किया है:
1. किस चीज़ पर फोकस करे, इस बारे में डिसीज़न
2. मीनिंग ऑफ़ इवेंट्स और उनके इंटरप्रेशन के बारे में डिसीजन
3. जो हमें लेने है उन एक्शन के बारे में डिसिजन
चलो इन तीनो ग्रुप्स को ब्रीफ एक्जाम्प्ल्स के थ्रू समझते है क्योंकि इन्हें समझना एक्स्ट्रीमली इम्पोर्टेन्ट है तभी हम इस टेक्स्ट का पर्पज समझ पायेंगे.
किस चीज़ पर फोकस करे, इस बारे में डिसीज़न
हम सब निकोलस टेस्ला के बारे में जानते है, एक यूरोपियन, एक शानदार पर्सनेलिटी का मालिक जिसने हमारे आज के इस मॉडर्न टाइम को काफी कुछ दिया है. ये अपने टाइम के हिसाब से काफी फ्यूचरिस्टिक, काफी आगे थे (सिर्फ साइंटिफिक सेन्स में ही नहीं ). उनकी लाइफ स्टाइल, उनकी यूज्वल लाइफ हर चीज़ में वो अपने टाइम से कहीं ज्यादा आगे चलते थे. लेकिन अभी जल्दी क्या है इस स्टोरी में आगे बढ़ने की.
पहले जान लेते है कि निकोलस टेस्ला का चाइल्डहुड कैसा था. निकोलस टेस्ला आस्ट्रो-हंगेरियन एम्पायर(मॉडर्न डे क्रोटिया) के स्माल विलेज में पैदा हुए थे. उनके पिता ओर्थोडॉक्स प्रीस्ट थे. टेस्ला को बेस्ट एजुकेशन दी गयी थी. बचपन से ही वो हर चीज़ में बड़ा फोकस करते थे और अपनी पूरी कोंसंट्रेशन दिखाते थे.
सिंपली बोले तो वे बाकी बच्चो से काफी डिफरेंट थे. जैसे कि वो अपने हाथो से वाटरमिल जैसी चीज़े बनाया करते. और जब वो बड़े हुए ये क्लियर होता गया कि वो एक ट्रू जीनियस है. फिर वो आस्ट्रिया चले गए यूनिवेर्सिटी में पढने के लिए. और वहां उनकी लाइफ स्टाइल बाकी यंग लोगो की तरह ही थी. वो स्मोक करते थे, ड्रिंक करते थे और कार्ड्स भी खेलते थे.
ज़रा इमेजिन करो कि एक जीनियस इन्वेंटर गेम्ब्लिंग में अपना पैसा हार रहा है! लेकिन अपने फ्रेंड्स से एकदम अलग उन्हें जैसे एक झटके में इन सब चीजों की लत लगी, उसी तरह एक झटके में ही छूट भी गयी. उनकी ऑटोबायोग्राफी “ माई इन्वेंशंस” जोकि ओरिजनली इंग्लिश में लिखी गयी है, उसमे टेस्ला के कॉलेज लाइफ की ये सब बाते बड़े अच्छे से डिसक्राइब की गयी है.
तो अगर हम कहे कि जीनियस होने के अलावा निकोलस टेस्ला के बारे में क्या चीज़ श्योर है तो हम सकते सकते है कि उनकी “पॉवर ऑफ़ विल”. चलो अब आगे उनकी एक चीज़ पर कम्प्लीट फोकस करने की एबिलिटी चेक करते है. वो एक तरह से अपनी लेबोरेट्री में ही रहते थे.
जब वो एक चीज़ पे फोकस करते तो बाकी सारी चीजों को नेगलेक्ट कर देते थे. ये उनकी खूबी थी. सुबह उठते ही वो काम पे चल पड़ते थे. वो कम से कम 16 घंटे तो ज़रूर काम करते थे.
ओल्डर होने के साथ ही उनकी अमाउंट ऑफ़ स्लीप भी डिक्रीज़ होने लगी थी क्योंकि वो सोते कम थे. वो अपने काम में इतना डूब जाते थे कि नींद की भी परवाह नहीं करते थे.
हम बोल सकते है कि शायद उनका अपनी बॉडी पर एक तरह का कण्ट्रोल था कि वो अपनी नींद तक भगा सकते थे. लेकिन अभी और सुनिए. टेस्ला औरतो के मामले में नोटोंरियस थे. वो औरतो से दूर भागते थे. अपने फ्रेंड्स और कलीग्स से एकदम उलट वो सेक्स से दूर भागते थे. उनकी प्राइवेट लाइफ एकदम कोल्ड और इमोशनलेस थी. ऐसा भी नहीं था कि वो पूरे असेक्सुअल थे या उन्हें कोई प्रॉब्लम थी लेकिन पता नहीं क्यों मगर उन्हें लगता था कि प्यार, रोमांस जैसी चीज़ उनके काम में इंटरफेयर करेगी. और अपने साइंटिफिक एक्सपेरीमेंट्स में वो किसी तरह की डिस्टर्बेंस नहीं चाहते थे.
क्योंकि वो अच्छे से जानते थे कि दो नावो की सवारी एक साथ पोसिबल नहीं है. इसलिए उन्होंने प्यार मोहब्बत के बदले साइंस को चूज़ किया. टेस्ला श्योर थे कि उन्हें क्या चाहिए और उसकी क्या प्राइस उन्हें देनी होगी. उन्होंने क्लियर डिसीजन लिया था कि वो किस चीज़ पर फोकस करेंगे.
ना तो हम उनकी इस लाइफ स्टाइल को डिजायरेबल या अच्छी बोल रहे कि आप भी ऐसा ही करो और ना ही हम यहाँ टेस्ला की लाइफ का मजाक उड़ा रहे है, या इसे बेड बोल रहे है. हो भी सकता है कि कुछ लोगो को ये लाइफ स्टाइल एकदम कोल्ड और अलूफ लगे वही बाकि कुछ लोगो को उनकी ये स्टोरी इंस्पायरिंग लगे.
डिसीज़न्स अबाउट मीनिंग ऑफ़ इवेंट्स एंड देयर इंटरप्रेशन
आपने अक्सर थेरेपिस्ट्स को इस टाइप की बाते कहते सुना होगा “आप उस इंसान से नाराज़ नहीं है बल्कि उसके बिहेवियर को अपने पॉइंट ऑफ़ व्यू से देखने पर आपको गुस्सा आ रहा है”
जब थेरेपिस्ट इस टाइप की बाते करते है तो इसका क्या मतलब होता है? वेल, कुछ ऐसा ही एंथोनी रॉबिन्स का भी मानना है जब वो उन डिसीजन्स के बारे में बोलते है जो इवेंट्स के मीनिंग और उनके इंटरप्रेशन के बारे में होती है. और दोनों मैसेज एकदम क्लियर है: आवर नोलेज अबाउट द वर्ल्ड इज़ नोट डायरेक्ट. इट्स इनडायरेक्ट.
हमें हमेशा डिसाइड करना पड़ता है कि कौन सा इंटरप्रेशन मोस्ट रियेलिस्टिक है. और हमारे पास उसका आल्टरनेटिव इंटरप्रेशन और मीनिंग हमेशा रहता है. तो रियल लाइफ में ये कैसे काम करता है? चलो एंगर मैनेजमेंट सिचुएशन को लेते है.
मान लो आप किसी पर बहुत गुस्सा हो. आपका फ्रेंड थोडा लेट हो गया क्योंकि उसे याद ही नहीं रहा कि आप साथ में घूमने जाने वाले थे, या फिर लास्ट मिनट में उसने प्लान चेंज कर दिया घूमने का. खैर जो भी बात हो- आपको बहुत गुस्सा आ जाता है और आप अपना गुस्सा जस्टिफाईड कर सकते है क्योंकि गलती आपके फ्रेंड की है. और सच बात तो यही है कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था.
लेकिन जिस मोमेंट आपने सोच लिया कि आपके गुस्से की वजह आपके फ्रेंड का बिहेवियर है, उसी मोमेंट आप गलत हो जाते है. आप इसलिए गुस्सा है क्योंकि आप अपने फ्रेंड के बिहेवियर को खुद अपने तरीके से इंटरप्रेट कर रहे है. एक्जाम्पल के लिए आपका फ्रेंड फिर से लेट हो गया. आप नर्वसली इधर से उधर चक्कर काट रहे है, बार बार घड़ी चेक कर रहे है. कुल मिलाके आप टेन्श और रेस्टलेस है.
आप शायद सोचे कि आपका फ्रेंड कितना इररिसपोंसीबल है. आपने मन में सोच भी लिया है कि जब वो आएगा तो आप उसे क्या-क्या बोलने वाले है.और इस सबसे आपका गुस्सा और बढ़ जाता है. लेकिन अगर आप थोडा रुक कर सोचे कि “वेट, कहीं मेरा फ्रेंड ट्रैफिक जाम में तो नहीं फंस गया” या शायद ये सोचे” हाँ, मुझे गुस्सा आ रहा है, लेकिन मेरा दोस्त इतना भी बुरा नहीं है, उसमे कुछ अच्छी बाते भी है. और इसके अलावा वो हेमशा लेट नहीं होता, बस आज हुआ है. ऐसा एलीमेंटरी स्कूल में भी हुआ था.
तो इस तरह सोचने से आप एक आल्टरनेटिव चूज़ करते है जो इवेंट्स का एक हेल्दिय्रर इंटरप्रेशन है यानी सिंपली बोले तो आप हालत का दूसरा पहलू देखने की कोशिश करते है जोकि अच्छी बात है. जैसा एंथोनी रॉबिन्स बड़े अच्छे ढंग से पॉइंट आउट करते है “वो मोमेंट जब आप डिसाइड करते है कि ज़रूरी नहीं कि किसी इवेंट या किसी सिचुएशन पर आपका फर्स्ट, इम्पल्सिव इंटरप्रेशन सही हो” यही वो मोमेंट है जब आप उस इवेंट का दूसरा पोसिबल व्यू देखने की कोशिश कर रहे है.
लेकिन ये तो बस एक एक्जाम्पल है. एंथोनी रोबिन ऐसी और भी सिचुएशन बताते है जहाँ हमे लोस या डीफीट को इंटरप्रेट करना होता है. कहने की ज़रुरत नहीं है कि अक्सर लोगो को ऐसे पेनफुल सब्जेक्ट्स को फेस करना अच्छा नहीं लगता. और यहाँ तक कि जब वो बैठकर इस बारे में सोचते है तो हमेशा नेगेटिव और डिप्रेसिव थिंकिंग से भर जाते है. और ये पक्की बात है कि इससे उनमे लैक ऑफ़ मोटिवेशन की फीलिंग आती है जो एक तरह से फ्यूचर में हमारे फेलर के चांसेस बढाती है.
लेकिन ये थिंकिंग बेकार है, इसमें कोई लोजिक ही नहीं होता. जैसे माना कि एक लड़की है जो एक स्टूडेंट है. इसने एक टेस्ट दिया लेकिन वो फेल हो गयी. अब क्योंकि ये टेस्ट उसके लिए इम्पोर्टेन्ट था और उसने इसके लिए मेहनत भी काफी की थी तो ये नेचुरल बात है कि फेल होने से वो डिप्रेशन में आ गयी.
ऐसी सिचुएशन में जो फर्स्ट इमोशनल रिस्पोंस होगा उसे अवॉयड करना रेयर है. ये वो डीप गट फीलिंग है जो हम इंस्टेंटली फील करते है. लेकिन हम चाहे तो बाकी चीज़े चेंज हो सकती है. अब जैसे इस केस को लेते है. जब उस लड़की को रियेलाईज़ हुआ कि वो फेल हो गयी है उसे ऐसे और भी मौके याद आये जहाँ वो फेल हुई थी. और जैसे ही उसे ये खयाल आया, उसे लगने लगा कि उसकी तो पूरी लाइफ ही एक फेल है.
हर चीज़ जो उसने आज तक की. वो चाहे कितना भी हार्डवर्क कर ले वो फेल होती रहेगी- -उसकी डिप्रेसिव थिंकिंग के हिसाब से, ये रीसेंट टेस्ट एक एक्जाम्पल है कि उसकी किस्मत में फेल ही लिखा है. उसने इतनी मेहनत से पढाई की और टेस्ट भी इतना इम्पोर्टेंट था फिर भी वो फेल हो गयी. अब यहाँ पर हम मोस्ट इम्पोर्टेंट पार्ट पर आते है. रोने धोने के बजाये वो फ्यूचर में मिलने वाले मौको के बारे में सोचे और खुद से कहे” जो हुआ सो हुआ, ये टेस्ट अभी भी मेरे लिए इम्पोर्टेंट है और मै पहले से भी ज्यादा मेहनत करुँगी और पास होके दिखाउंगी”
जब मै अपना बेस्ट दूँगी तभी तो पता चलेगा कि मै क्या डिज़र्व करती हूँ, इस तरह की थिंकिग प्रोएक्टिव है और उन चीजों पर फोकस करती है जो चेंज की जा सकती है. जैसे स्टडी टाइम बढ़ाना, क्योंकि ये अपने हाथ में है. वही दूसरी तरफ जो इंसान किसी इवेंट का सिर्फ बेड साइड पर फोकस करेगा वो कुछ ऐसे सोचेगा – मै कितना बुरा हूँ, मैंने इतनी पढ़ाई की फिर भी फेल हो गया. मै इतना डम्ब हूँ कि एक टेस्ट तक पास नहीं कर पा रहा.
यहाँ हम एक ऐसे इंसान को देख रहे है जो अपनी हार के लिए अपने इनर केरेक्टरस्टिक और केपेबिलिटीज को ब्लेम कर रहा है. फर्स्ट सिचुएशन में जब कोई प्रोएक्टिव अप्रोच अडॉप्ट करता है तो वो फेलियर के लिए आउट साइड फैक्टर्स को ब्लेम करता है नाकि खुद को.
जैसे कि बजाये अपने इनर ट्रेट्स को कोसने के ऐसा इंसान अपनी डीफीट के लिए ऐसे फैक्टर्स पॉइंट आउट करेगा जो चेंज हो सकते है, जिन्हें कण्ट्रोल किया जा सकता है. क्योंकि अपने पर्सनेलिटी ट्रेट्स और इंटेलीजेन्स कण्ट्रोल करना इतना ईजी नहीं होता. लेकिन हाँ मेहनत करना, स्टडी का टाइम इनक्रीज करना जैसे फैक्टर्स हम कण्ट्रोल कर सकते है. और अब हम एक बड़े इम्पोर्टेन्ट पार्ट पर आये है.
जब कोई इंसान किसी इवेंट पर कोई सर्टेन पर्सपेक्टिव अडॉप्ट करता है तो वो अडॉप्टशन उसकी जजमेंट और मेमोरी को भी इन्फ्लुयेंश करने लगती है. जैसा हमने एक्जाम्पल में देखा कि वो लड़की जब फेल हो जाती है तो कैसे उसे इस टेस्ट की वजह से पिछले टेस्ट में फेल होने की बात याद आ जाती है. इसी तरह इसके उलट जब वो प्रोएक्टिव स्टेंस अडॉप्ट करती है तो फ्यूचर में पास होने के बारे में सोचने लगती है.
इसलिए पोजिटिव इंटरप्रेशन चूज़ करने से हम अपने ब्रेन को कुछ ऐसे रीवायर करते है कि ये ज्याद पोजिटिव वे में सोचना स्टार्ट कर देता है. और हमें और ज्यादा पोजिटिव मेमोरीज़ रिकॉल होने लगती है. एक एक्जाम्पल और देते है. हमारे स्टूडेंट्स शायद ये बोले “मुझे यकीन है कि ज्यादा स्टडी करके मै इस सब्जेक्ट का मै मास्टर बन जाऊँगा और शायद हाई ग्रेड भी ला सकता हूँ” मै सोचता हूँ कि अब तक जो मेरा पढने का ढंग था उसमे कुछ कमियाँ रही होंगी. मेरा फोन भी वही रहता था, बार-बार मै इन्स्टाग्राम और मैसेज चेक करता रहता था. मैंने पढने का सही मेथड तो चूज़ ही नहीं किया था. लेकिन नेक्स्ट टाइम मै बिलकुल डिफरेंट अप्रोच के साथ पढ़ाई करूँगा.
कुल मिलाकर बोले तो जब हम प्रजेंट में पोजिटिव रहते है तो हमे अपना पास्ट और फ्यूचर भी पोजिटिव लगता है..
डिसीजंस अबाउट एक्श्न्स वी आर गोइंग टू टेक
डिसिजंस उन एक्शन के बारे में जो हम लेने वाले है
ये शायद सबसे स्ट्रेटफॉरवर्ड टाइप के डिसीजंस होते है जैसा कि एंथोनी रॉबिन्स मेंशन करते है. लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि इनकी वैल्यू कम हो जाती है. ये उतने ही इम्पोर्टेंट है जितने कि पहले वाले दो टाइप के है. एक्शन के डिसिजन लास्ट में आते है. अब जैसे कि मान लो जिसमे हमे फोकस करना है, वो फील्ड हमने चूज़ कर लिया – दुसरे वर्ड्स में बोले तो अपनी चॉइस का फील्ड जिसमे हम पूरा फोकस करना चाहते है- अब ये हमे डिसाइड करना है कि कौन सा एक्शन ले जो हमे उस गोल तक ले जाए. इससे हम देख सकत है कि हमाए डिफरेंट टाइप के डिसीज़न्स कैसे एक दुसरे को कंप्लीमेंट और एक स्ट्रेंग्थ देते है. इसके अलावा एक्शन के डिसीजंस कई बार क्रूशियल होते है यहाँ तक कि आप इन्हें लाइफ सेविंग भी बोल सकते है. अब जो स्टोरी हम यहाँ सुनाने वाले है उसमे तो पक्का कहा जा सकत है कि एक्शन डिसीज़न लाइफ सेविंग ही था.
रोल्ड एमुन्डसेन की स्टोरी
रोल्ड एमुन्डसेन एक ऐसा आदमी था जो अपने अन्दर के जायंट को जगाने में पूरी तरह कामयाब रहा. एक नोरवेजियन एडवेंचरर, एक्स्पेडीटीयंश, जिसने कई सारी अननोन टेरीट्रीज़ का फर्स्ट मैप ड्रा करने में अपना कंट्रीब्यूशन दिया था.
आपको हम उसके कुछ अनबिलिवेबल अचीवमेंट्स बताते है- साउथ पोल पहुँचने वाला फर्स्ट मेन, नार्थवेस्ट पैसेज क्रोस करने वाला फर्स्ट मेन और फाइनली फर्स्ट मेन जिसने नार्थ पोल के ऊपर से फ्लाई किया. मतलब कि वो एक बड़ा ही रेस्टलेस आदमी था जो हमेशा आगे बढ़ने की सोचता था, और जब तक कम्प्लीट सक्सेस ना मिले जाए तक तक बैठता नहीं था.
और उसकी डिसाइड करने की ये एबिलिटी कि किस एक्शन से उसे सक्सेस मिलेगी, कमाल की थी. जैसे कि साउथ पोल रेस में उसके सामने मुश्किलें आई. उसके खिलाफ थे रोबर्ट स्कॉट, एक ब्रिटिश नेवल ऑफिसर, जिसे क्वीन का सपोर्ट था और उनके पास लेविश इन्वेस्टमेंट भी था.
दूसरी तरफ रोल्ड एमुन्डसेन को एक बोट हासिल करने के लिए भी काफी मुश्किलें आई जिसमे उनको अंट्राक्टिक तक पहुंचना था. इसके अलावा रोबर्ट स्कॉट के पास बैटर एक़ुइपमेंट्स थे, जैसे मोटर स्लेजेस, घोड़े वगैरह. लेकिन अपनी केयरफुल प्लानिंग की वजह से एमुन्डसेन को इस रेस में विक्ट्री मिली.
मतलब कि वो अपने फ्यूचर एक्शन के बारे में बेस्ट डिसीज़न लेने में एबल थे – उन्हें मालूम था कि मोटर स्लेज अनरिलाएबल है खासकर पोलर टेम्परेचर मे. उन्हें ये भी पता था कि एस्किमोज़ यानी इनयूइट्स आने जाने के लिए पोलर डॉग्स का यूज़ करते है इसलिए उन्होंने डिसाइड किया कि वो भी पोलर डॉग्स की हेल्प लेंगे.
दूसरी बात, उन्होंने एक्जेक्ट रूट पहले ही प्लान कर लिया था और रियल एक्स्पेडीशन से पहले ही उन्होंने रास्ते के लिए फ़ूड वगैरह की सप्लाईज़ अपने रूट के रास्ते में करवा दी थी जिससे उन्हें अपने साथ ज्यादा चीज़े कैरी नहीं करनी पड़ी.
और तीसरी बात ये कि आपको शायद ये अच्छी ना लगे मगर जो एमुन्डसेन की स्कसेस के लिए बहुत क्रूशियल थी. वो ये था कि एमुन्डसेन जानते थे कि साउथ पोल आते आते उनकी सप्लाईज़ ओवर होने लगेंगी जिसकी वजह से उनके कुछ डॉग्स फिनिश्ग स्टेज में उनके लिए बर्डन बन जायेंगे इसलिए उन्होंने डिसाइड किया कि वो उनमे से कुछ डॉग्स को मारकर खा लेंगे.
ये सुनने में काफी ग्रोस लगता है लेकिन ये एमुन्डसेन के लिए बहुत इम्पोर्टेंट था. पहले के अपने कुछ एक्पेडीशंश में वो स्कर्वी यानी विटामिन सी की कमी का डेडली इफेक्ट देख चुके थे. उन्हें अच्छे से मालूम था कि स्कर्वी से कैसे बचा जा सकता है – या तो अपने साथ खूब सारे सिट्रस फ्रूट्स रखो या फिर मीट खाओ.
इसलिए एमुन्डसेन के पास बस एक सिम्पल चॉइस बची थी- ऐसी जगह में सिट्रस फ्रूट्स मिलने का तो सवाल ही नहीं था तो फिर या तो वो स्कर्वी से मरे या फिर अपने डॉग्स मारकर खाए – हमे गलत मत समझो लेकिन उनके लिए अपने लॉयल फ्रेंड को मारकर खा जाना कितना पेन फुल रहा होगा ये आप समझ सकते है. लेकिन जब आपको टॉप पर पहुँचने की डिजायर होती है तो सेक्रीफाईसेस तो करने ही पड़ते है.
कनक्ल्यूजन
मोस्ट इम्पोर्टेंट कनक्ल्यूजन जो आप शायद इस समरी से निकाले वो है कि अपने अंदर के जायंट को जगाना एक लॉन्ग और कोंटीन्यूएस प्रोसेस है. आपका हर डिसीज़न आपको अपने ही बेस्ट वेर्जन के एक स्टेप और करीब ले आता है. लेकिन आपको लगातार अपने गोल की तरफ बढ़ते रहना होगा और जिसके लिए आपको लगातार प्रैक्टिस करनी होगी. यहाँ हम कुछ बेस्ट टेकअवेज़ बता रहे जो आपको ध्यान रखने होंगे:
1. बेलेन्स्ड एक्सपेक्टेशन–आपका स्टैण्डर्ड समवेयर इन मिडल यानी ना तो बहुत हाई और ना बहुत लो होना चाहिए. एक्सट्रीमली लो या हाई स्टैण्डर्ड से आपका मोटिवेशन डिक्रीज़ हो सकता है.
2. कोई भी लड़ाई लड़े बिना नहीं जीती जा सकती –अपने सामने आने वाले चेलेन्जेस को कभी अंडरएस्टीमेट ना करे.
3. वर्ल्ड के बारे में हमारी नॉलेज डायरेक्ट नहीं है. बल्कि इनडायरेक्ट है. क्योंकि हमें हमेशा यही डिसाइड करना पड़ता है कि कौन सा इंटरप्रेशन ज्यादा रियलइस्टिक है और हमारे पास हमेशा ही आल्टरनेटिव्स इंटरप्रेशन और उनकी मिनिंग्स होती है.
4.तीन मेजर टाइप के डिसीजन्स होते है जो आपको अपने अंदर के जायंट को जगाने में हेल्प करे. डिसीज़न इस बारे में कि किस चीज़ में फोकस करे, डिसीज़न कि इसकी मीनिंग के बारे में आप क्या सोचते है. और डिसीज़न उन एक्श्न्स के बारे में तो आप किसी इवेंट्स के बाद लेने के बारे में सोचते है.
तो दोस्तों आपको आज का हमारा ये Awaken The Giant Within Book Summary in Hindi कैसा लगा नीचे कमेंट करके जरूर बताये और इस समरी Awaken The Giant Within Book Summary in Hindi को अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करे।